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________________ नागरी प्रचारिणी पत्रिका पहली पुस्तक 'राक्षसों की कहानियाँ' है । इसमें ८६ पृष्ठों में भिन्न भिन्न छ: कहानियाँ संगृहीत हैं। ये कहानियाँ बालकों के मनोरंजन के निमित्त लिखी गई हैं। इस कार्य में लेखक को अवश्य सफलता मिली है। 'पक्षी का प्रेम' शीर्षक कहानी तो बहुत सुंदर बन पड़ी है। परंतु शेष कहानियों में राक्षसों, डाइनों, भूतों आदि को हत्या करते हुए, भयंकर और वीभत्स व्यापारों में निरंतर संलग्न देखने से छोटी आयु के बालकों के कोमल हृदय पर उनका सुरुचिपूर्ण प्रभाव न पड़ेगा। उन्हें इन कहानियों में अपनी अद्भुतव्यापार-प्रियता की तुष्टि भले ही मिले; परंतु इनसे उनके संस्कार परिष्कृत न होगे । 'राक्षस और सेनापति' इस संग्रह की सबसे पहली कहानी है; फिर भी उसका कथानक इतना जटिल है कि शिशु पाठक उसे समझने में समर्थ न हो सकेंगे । दूसरी पुस्तक 'इतिहासों की कहानियाँ' है । इसमें थोड़े में शिवाजी, प्रताप, पन्ना धाय, नेपोलियन और महमूद गजनवी के सोमनाथ पर धावे की एक विशिष्ट घटना के प्रतिरिक्त भक्त क्रिस्टफर के सेवा-भाव की एक गाथा लिखी गई है । इसके पढ़ने से बच्चे के हृदय में वीरता, देश-प्रेम, आत्मनिर्भरता, सेवा जैसी उदात्त भावनाएँ जागरित होंगी, इसमें संदेह नहीं । महापुरुषों के जीवन के दो-एक महावपूर्ण अंशों को लेकर उनका इस प्रकार का संक्षिप्त परिचय छोटे बालकों के लिये बहुत उपयोगी सिद्ध होगा । तीसरी पुस्तक का नाम है 'बलभद्दर' । इसमें संभव और असंभव का विचित्र सम्मिश्रण दिखाई पड़ता है । पुस्तक के आरंभ में लेखक ने वास्तविकता लाने का प्रयास प्रत्रश्य किया है, परंतु थोड़ी दूर चलकर वह उसका सम्यकू निर्वाह नहीं कर सका । वृद्ध कृष्णप्रसाद जो अपनी कन्या 'आशा' के प्राग्रह से बहुत दिनों के बाद बड़ी तकलीफ से घोड़े पर चढ़े थे ( पृष्ठ १८ ) वहो आगे चल Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com ३६४
SR No.034974
Book TitleNagri Pracharini Patrika Part 15
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShyamsundardas
PublisherNagri Pracharini Sabha
Publication Year1935
Total Pages526
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size34 MB
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