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विविध विषय साहित्य-संसार में "प्रेम-सतसई" के द्वारा पहले ही पदार्पण कर चुके हैं। इधर "नेह-निकुंज" में उनकी वे भाव-तरंगे दिखाई पड़ती हैं जो उनके उपास्य श्री राधा-माधव की मंजु मूर्ति की छवि देखने के अनंतर उनके मानस में उद्वेलित हुई थों। इस निकुंज में वे अपने प्रियतम के साथ खुलकर खेलते हुए दीख पड़ते हैं। ब्रजपति के प्रेमी होने के कारण उनकी भाव-जाह्नवी रसवती ब्रजवाणी में सहस्रधा होकर प्रवाहित हुई है। दोहा, सोरठा, पद्धरी, घनाक्षरी, सवैया, छप्पय आदि विविध छंदों के साथ ही व्रज-भाषा के रससिद्ध कवियों के से अनूठे पो का आश्रय पाकर 'रज' की अनुभूति बहुत ही सरस रूप में व्यक्त हुई है। उन्होंने इस जमाने में भी पुराने समय के से भक्तों का दिल पाया है, इस कारण उनकी रचना में अनेक स्थलों पर तन्मय कर देने की शक्ति है। कवि ने श्रीकृष्ण के जीवन से संबद्ध विविध घटनाओं पर जो कुछ कहा है उसी का इसमें संग्रह हुआ है। इसमें रीति-कालीन कवियों की सी अभिव्यंजनापद्धति का प्रवलंबन हुआ है। निस्संदेह कवि की सहृदयता और भावुकता प्रशंसनीय है। ऐसी अनूठी पुस्तक का दाम दुनियावी सिक्कों में सीमित न करके "कृपा' रखकर इसे सचमुच अमूल्य रखा गया है। यह पुस्तिका स्नेही भक्तों के बड़े काम की वस्तु है।
(२) हिंदी-मंदिर, प्रयाग की तीन पुस्तके-हिंदी में बालकोपयोगी साहित्य का प्रभाव सा है। इधर कुछ दिनों से कई लेखकों और प्रकाशको ने इस प्रभाव की पूर्ति करने का प्रयत्न करना प्रारंभ किया है। प्रयाग के हिंदी-मंदिर ने उच्च कोटि के साहित्य के प्रकाशन के साथ ही बालकों के लिये भी कई उपयोगी पुस्तकें प्रकाशित की हैं। उनमें से तीन पुस्तिकाएँ इस समय हमारे सामने हैं। इनके लेखक हैं 'बानर' के संपादक श्री आनंदकुमार ।
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