________________
३६२
नागरीप्रचारिणी पत्रिका राजत्व-काल सन् १५३० ई. तक है, अर्थात संवत् १५८७ से १५६७ तक है। इस हिसाब से व्यासजी का दीक्षा-काल संवत् १५८७ से पहले या उसी के लगभग मानना पड़ेगा। अतएव हरीराम व्यासजी का सं० १६२२ में शिष्य होना किसी भी प्रकार से सिद्ध नहीं होता।
हिंदो-शब्दसागर के लेख में यहाँ तक तो श्रीमन्महाप्रभु के जन्म-संवत् के विषय में चर्चा है; इसके आगे श्री राधावल्लभीय संप्रदाय के विषय में ऐसी ही जनश्रुतियों की भरमार है। सुयोग्य लेखक लिखते हैं—'कहते हैं हितहरिवंशजी पहले मध्वानुयायो गोपाल भट्ट के शिष्य थे ।" इस 'कहते हैं। ने बड़ा गड़बड़ मचाया है। कौन कहते हैं--यह स्पष्ट लिखना चाहिए। बिना आधार के किसी बात को ग्रहण नहीं करना चाहिए ।
कृष्णगोपाल शर्मा
( ३ ) समालोचना (१) नेह-निक ज-लेखक, दीवान बहादुर, कैप्टेन चंद्रभानुसिह, 'रज'। प्रकाशक, प्रेम-भवन, गरौंली। प्रथमावृत्ति, संवत् १६६०, पृष्ठ २६+६८। मूल्य, ‘कृपा' ।
नेह-निकुंज के लेखक श्रीयुत दीवान बहादुर कैप्टेन चंद्रभानुसिंह, 'रज' बुंदेलखंड के अंतर्गत गरौली रियासत के स्वामी हैं। उन्होंने राज्य कार्य का संचालन करते हुए शिखा-सूत्र त्यागकर (प्रबलानंद नाम ग्रहण करके ) संन्यास ले लिया है; पर साथ ही वे श्री राधाकृष्ण के अनन्य उपासक हैं। इस प्रकार इस भौतिक वाद के युग में वे राजर्षि जनक का सा विषम व्रत पालन कर रहे हैं। वे
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
www.umaragyanbhandar.com