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________________ विविध विषय ३५६ श्रीमन्महाप्रभुजी को मंत्र की प्राप्ति हो गई तब उन्होंने, श्री राधिकाजी के आज्ञानुसार, कूप में से द्विभुजस्वरूप निकालकर मंदिर देवन माम बनायो । तहाँ सु प्रभु को लै पधरायो। राग भोग नित नूतन करहीं। अपने तन मन करि बिस्तरहीं। अब विचार कीजिए कि एक कट्टर मुसलमान बादशाह के ही राजत्व-काल में, जैसा कि सिकंदर लोदी था और जिसने मंदिर तुड़वाकर मस्जिदें बनवाई थों, क्या देववन में-बिलकुल उसकी नाक के ही नीचे-कोई हिंदू नया मंदिर बनवा सकता था। यह घटना भी इस बात को पुष्ट करती है कि उस समय बहलोल लोदी का शासन-काल था, अर्थात् सं० १५३० में ही महाप्रभु का जन्म हुआ था। हमारे सांप्रदायिक ग्रंथों में, जो श्रीमन्महाप्रभु के समकालीन महानुभावों के रचे हुए हैं, सबसे प्रामाणिक ग्रंथ 'श्री हिवसेवक-वाणी' है। यह श्रीमन्महाप्रभुजी के परम प्रिय शिष्य सेवकजी का लिखा हुआ है। उन्होंने श्रीमन्महाप्रभुजी के जन्म-समय की अवस्था का वर्णन करते हुए लिखा हैम्लेच्छ सकल हरिनस बिस्तरहि । परम ललित वाणो उच्चरहि । करहि प्रजा-पालन सबहिं । ___अपनी अपनी रुचि वसवास ॥ जस वरणौ हरिवंश विलास । श्री हरिवंशहि गायहैं। ॥ इससे भी यही बात पुष्ट होती है कि वह समय सहिष्णुता का था और इसका कारण तत्कालीन बादशाह की नीति ही था। हम बराबर देखते हैं कि मध्यकालीन भारत में धार्मिकता या कट्टरता का संबंध तत्कालीन शासक से ही होता था। 'यथा राजा तथा प्रजा' की कहावत खूब चरितार्थ होती थी और थोड़े-बहुत रूप में विश्व के विभिन्न देशों में यह कहावत अब भी चरितार्थ है। वास ॥ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034974
Book TitleNagri Pracharini Patrika Part 15
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShyamsundardas
PublisherNagri Pracharini Sabha
Publication Year1935
Total Pages526
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size34 MB
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