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________________ विविध विषय ३५७ है। इसके प्रमाण में केवल इतना ही लिखा है कि "राधावल्लभीय संप्रदाय के पंडित गोपालप्रसाद शर्मा ने संवत् १५१० माना है जो सब घटनाओं पर विचार करने पर ठीक नहीं जान पड़ता है।" परंतु उन्होंने उल्लेख एक ही घटना का किया है। प्रस्तु, हम सुयोग्य संपादकों की “सब घटनाओ" को अपने सामने न रखते हुए स्वतंत्र रीति पर ही विचार करते हैं; और जिस एक घटना का उन्होंने उल्लेख किया है उसकी वास्तविकता पर पीछे प्रकाश डालेंगे। विचार यह करना है कि सं० १५५६ वाली बात प्रारंभ हुई कहाँ से। हमारे संप्रदाय में श्री महाप्रभुजो के समकालीन महानुभावों से लेकर आज पर्यंत यह सुदृढ़ और पुष्ट प्रमाणों से युक्त मत है कि श्री महाप्रभु का जन्म-संवत् १५३० है। परंतु श्री गौड़ीय संप्रदाय के महात्मा भगवत् मुदित जी ने अपने ग्रंथ 'रसिक अनन्यमाल' में “जन्म-संवत् १५५६ माना है"; परंतु उन्होंने तत्का. लीन समय का जो वर्णन अपने ग्रंथ में किया है उससे संवत् १५५६ पुष्ट नहीं होता। इस बात को हम इस प्रकार पुष्ट करते हैं कि संवत् १५३० में दिल्लो पर बहलोल लोदी का प्राधिपत्य था और संवत् १५५६ में सिकंदर लोदी का। इतिहास कहता है कि बहलोल और सिकंदर दोनों अच्छे शासक थे। दोनों में भेद इतना ही था कि बहलोल की दृष्टि में हिंदू और मुसलमान दोनों सम थे और सिकंदर कट्टर मुसलमान था, उसने कई मंदिर तुड़वाए और उनके स्थान में मस्जिदें बनवाई। अब देखना यह है कि महात्मा भगवत् मुदितजी ने महाप्रभुजी के जन्म-समय पर तत्कालीन राजद्वारी अवस्था का कैसा वर्णन किया है। वे श्रीमन्महाप्रभुजी के पिता श्री व्यासजो के लिये लिखते हैं देस देस मधि सुजस प्रभास्यो । पृथ्वीपति लौ जाय प्रकास्यौ ।। बहु आदर सौं बोलि पठाए । नृप को मिलन मिश्रजी श्राए ।। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034974
Book TitleNagri Pracharini Patrika Part 15
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShyamsundardas
PublisherNagri Pracharini Sabha
Publication Year1935
Total Pages526
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size34 MB
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