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________________ विविध विषय ३५५ है 1 पुराने इतिहासज्ञ भी मौजूद हैं जिनकी सहायता कुछ वर्षों बाद न मिल सकेगी। उनकी उपस्थिति का लाभ अभी ही उठा लेना चाहिए । पुराने इतिहास से अभी तक केवल सन् ई० से ६०० वर्ष पूर्व का इतिहास समझा जाता है; पर भारतवर्षीय पुराण, इतिहास-लेखकों के अनुसार, अति पुरातन इतिहास सन् ई० के १४०० वर्ष पूर्व तक ही है । उसके पश्चात् ते। नंद तक (४०० ई० पू०) वह प्राचीन और महानंद से इस पार आधुनिक काल का इतिहास कहा जाता है । भीष्मपर्व में संजय - युधिष्ठिर से भारतवर्ष का वर्णन करते समय - मनु वैवस्वत, पृथु, इक्ष्वाकु, मांधाता, नहुष, मुचकुंद, शिवि औशीनर, ऋषभ, ऐल, नृग, कुशिक, गाधि, सोमक, दिलीप आदि के भारत को पुरातन भारत कहते हैं । पंड्या बैजनाथ २ ) भ्रम - निवारण नागरीप्रचारिणी सभा, काशी द्वारा प्रकाशित हिंदी शब्दसागर (कोश) हिंदी भाषा-भाषियों के लिये गौरव की वस्तु है । इस कोश की भूमिका भी साहित्यिक जगत् में अपना स्थान रखती है; परंतु शब्दसागर के सुयोग्य संपादकों ने जितना परिश्रम पुस्तक के मूल भाग को सर्वथा संपन्न बनाने में किया है उतना परिश्रम, मालूम होता है, भूमिका के लिखने में नहीं किया । भूमिका लिखने में जो ढंग अख्तियार किया गया है उसे सफल बनाने के लिये साहित्यिक खोज की आवश्यकता थी । किंतु वह न करके उन्होंने किन्हों स्थलों पर केवल निराधार किंवदंतियों Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034974
Book TitleNagri Pracharini Patrika Part 15
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShyamsundardas
PublisherNagri Pracharini Sabha
Publication Year1935
Total Pages526
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size34 MB
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