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नागरीप्रचारिणी पत्रिका
संभव है। बाबू दुर्गाप्रसादजी के बी (B) वर्ग की मुद्राओं में एक वृक्ष बना है जो पाटलिपुत्र की और सारनाथ की खुदाई में मिले पूर्ववर्णित सिक्कों पर भी मौजूद है । यह पाटलिपुत्र को सूचित करनेवाला पाटली का वृक्ष जान पड़ता है ।
रायबहादुर राधाकृष्ण जालन को पुराने पाटलिपुत्र में सोने के शिव-पार्वती मिले हैं। उनकी बनावट शैशुनाग और दीदारगंज मूर्त्ति (पटना म्यूजियम) के समान है । इसलिये ये मूर्तियाँ अति पुरानी हैं । जायसवालजी का मत है कि दीदारगंज की मूर्ति और ये माने के शिव गौरी सुगांगेय नाम के नंदप्रासाद के बचे पुराने अंश हैं ।
रा० ब० डाक्टर हीरालाल द्वारा कारंजा ( बरार ) में सन् -८०० ई० के जैन ग्रंथ मिले हैं जिनसे हिंदी का उस समय का रूप प्रकट होता है । अब ये ग्रंथ छप चले हैं। उनसे हिंदी के विकास का बहुत कुछ पता चलता है । महापंडित राहुल सांकृत्यायन ने पुराने मगध के सिद्ध लोगों का इतिहास ढूँढ़ निकाला है । उनके लेख सन् ७५० से ८०० ई० तक और उस समय की देशभाषा गए थे । उनसे ७५० तक की
के हैं और वे संस्कृत में में हैं । ये लेख नालंदा में लिखे पूर्वीय हिंदी का पता लगता है । जायसवाल महाशयजी का प्रस्ताव था कि रामायण भिन्न भिन्न देशों में भिन्न भिन्न रूपों में पाई जाती है-जैसे काश्मीरो, पूर्वीय दक्षिण की और बंगाली । जैसे महाभारत के जुदे जुदे रूपों का अध्ययन कर एक निश्चित संस्करण तैयार हो रहा है वैसे ही रामायण की सब सामग्री का विवेचनयुक्त अध्ययन होकर उसका भी एक निश्चित परीक्षात्मक संस्करण तैयार होना चाहिए । आपकी बड़ी और प्रशंसनीय इच्छा है कि प्राचीन भारतवर्ष का एक उत्तम इति - हाल भारतवासियों द्वारा ही लिखा जाय । सामग्री सब तैयार
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