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विविध विषय
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मिलती थीं । संभव है कि राजपूताना की मरुभूमि और मध्य प्रदेश के कुछ स्थानों में भी इसी प्रकार की वस्तुओं का प्रमाण मिले । जायसवाल महाशय का निश्चय है कि इस सभ्यता का और उसके मनुष्यों की जाति का निर्णय पुराणों से हो सकेगा । पुराणों का इतिहास जल प्रलय ( The Flood ) तक और उसके पूर्व तक जाता है । शतपथ ब्राह्मण में जिस जल प्रलय का वर्णन है वह भारतीय राजवंशों के पूर्व के इतिहास का प्रधान चिह्न है । डाक्टर ऊली ( Dr. Woolly ) की खुदाई से जल प्रलय को घटना की सत्यता सिद्ध हो चुकी है । यह प्रलय मेसोपोटेमिया से राजपूताना तक प्राया था और इस सीमा के दोनों अंत में उसका प्रमाण मिलता है। पुराणों के राजवंश प्रायः जल प्रलय से आरंभ होते हैं और महेंजोदरो की सभ्यता इस प्रलय के पीछे की है । मिस्टर करंदीकर ने पुराणों में स्पष्ट लेख पाया है कि नर्मदा नदी की तलहटी में इस जल प्रलय का प्रभाव नहीं पड़ा था। पुराणों की ठीक ठीक समझने के लिये सारे एशिया का पुराना इतिहास अच्छी तरह से ज्ञात होना चाहिए ।
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सोहगौरा (गोरखपुर) और महास्थान ( बंगाल) में मिले पुराने ब्राह्मी के ताम्रपत्रों का उल्लेख इस पत्रिका में अन्यत्र हो चुका है। इन महाशय की राय में ये दोनों चंद्रगुप्त मौर्य के समय के हैं और उसके राज्य में जो बार बार अकाल पड़ता था उस संबंध की घोषणा और व्यवस्था इनमें है । सोहगौरा-पत्र श्रावस्ती के मंत्रियों द्वारा घोषित हुआ था और महास्थान- पत्र को पुंड्र के मंत्रियों ने घोषित किया था । उत्तर बंगाल में उस समय कई अनार्य जातियाँ इकट्ठी मिलकर रहती थीं । ये दोनों लेख, जिनमें राजकीय आज्ञाओं की घोषणा है, अशोक से कोई ७५ वर्ष पूर्व के और मौर्यकाल के पुराने लेख हैं। सोहगौरा लेख में चंद्रगुप्त मौर्य
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