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विविध विषय
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षक के पास वे कपड़े छोड़कर अपनी मालकिन को ढूँढ़ने गई । उन कपड़ों को देख चंद्रगुप्त को स्त्री वेश धारण कर शत्रु के पड़ाव में से निकल जाने की युक्ति सूझी । वह श्मशान को गया या नहीं, यह उस नाटक में नहीं लिखा। पर ऊपर की तृतीय पंक्ति से जान पड़ता है कि चंद्रगुप्त ने वेताल को अपने वश में किया और उस कार्य में उसे प्रशोचयुक्त कार्य करने पड़े होंगे, जैसे मनुष्य- मांस का देना । 'वैताल पचीसी' में विक्रम और वेताल का संबंध दिखाया गया है ।
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गोविंद के विषय में भी यह कथा है कि उसने अपने भाई अमोघवर्ष द्वितीय को एक वर्ष के भीतर ही मारकर गद्दी ले ली थी । पूर्वोक अन्यान्य दोषारोप भी उस पर किए गए हैं; किंतु उसके कवि ने उन शंकाओं को सुंदरता के साथ मिटाने का प्रयत्न किया है ।
[ २ ] गोरखपुर जिले के सोहगौरा ग्राम में प्राय: छोटा सा ताम्रपत्र ब्राह्मी अक्षरों में लिखा केवल ४ पंक्तियाँ, आदि मौर्यकाल की लिपि में, हैं I चार कोनों में ४ छिद्र उस लेख को टाँगने के लिये हैं । लेख ढला हुआ है। उसमें एक राजाज्ञा लिखी है पर प्रारंभ में कुछ राजचिह्न लिखे गए हैं । इन्हीं राजचिह्नों के कारण उसका महत्त्व है क्योंकि वैसे ही चिह्न ठप्पेवाले सिक्कों (Punch marked coins ) पर भी मिलते हैं, जिनसे ये सिक्के भी आदि मौर्यकालीन सिद्ध होते हैं । ऐसी ही एक और पुरानी राजाज्ञा बंगाल के महास्थान में, वैसी ही पुरानी ब्राह्मी लिपि में लिखी हुई पाई गई है ।
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सोहगौरा ताम्रलेख का अर्थ यह है- “ इन दो कोठों का सामान—अर्थात् घास, गेहूँ और कड़गुला, छत्र, जुए के सैले तथा रस्सियाँ — प्रत्यंत आवश्यकता के समय ही उपयोग में लाया जाय, पर उसे कोई ले न जाय ।"
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कोई ६० वर्ष पूर्व २||" x १ || " का एक मिला था। लेख में
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