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________________ ३४८ नागरीप्रचारिणी पत्रिका लिखा है। गोविंद चतुर्थ, सन् ६४० ई० के लगभग, राष्ट्रकूट (महा राष्ट्र) का राजा था। उसके विषय में सोगली और खंभात के ताम्रपत्रों में यह श्लोक लिखा है सामध्ये सति निन्दिता प्रविहिता नैवाग्रजे क्रूरता बंधुस्त्रीगमनादिभिः कुचरितैरावर्जितं नायशः। शौचाशौचपराङ्मुखं न च भिया पैशाच्यमङ्गीकृतम् त्यागेनासमसाहसैश्च भुवने यः साहसाङ्कोऽभवत् ॥ यह गोविंद की प्रशंसा में है। इसका अर्थ यह है कि सामर्थ्य रहते भी गोविंद ने अपने बड़े भाई के प्रति निंदित क्रूरता नहीं की। न तो उसने भ्रातृस्नो-गमन के कुचरित्र द्वारा अपयश कमाया है और न डरकर, शौचाशौच का विचार न कर, पैशाच्य का ही अंगीकार किया। प्रत्युत वह ( गोविंद ) त्याग और असीम साहस द्वारा जगत् में 'साहसांक' बन गया। पुरातत्त्वज्ञ पहले इसका अर्थ नहीं समझ सकते थे । साहसांक से विक्रमादित्य का अर्थ है और यह उपाधि चंद्रगुप्त द्वितीय की है। श्लोक के प्रथम तीन पदों में जो बातें कही गई हैं वे चंद्रगुप्त ने की थों अर्थात् उसने अपने भाई रामगुप्त को मारकर उसकी स्त्री ध्रुवस्वामिनी से विवाह किया और शौचाशौच का विचार न कर पैशाच्य का अंगीकार किया। तीसरी पंक्ति का अर्थ रामकृष्ण कवि के 'देवी चंद्रगुप्ता' नाम के नाटक से खुलता है। उसमें लिखा है कि सब प्रकार से निरुपाय होकर चंद्रगुप्त की इच्छा रात्रि को श्मशान में जाकर वेताल को अपने वश में करने की थी; पर घेरा पड़े रहने के कारण शत्रु के मध्य में से निकल माना संभव न था। जब चंद्रगुप्त इस विचार में डूबा हुआ था तब एक चेटी ध्रुवस्वामिनी के कुछ कपड़े लेकर, अपनी मालकिन माधवसेना को ढूँढ़ती हुई, वहाँ आई और उसे न पाकर चंद्रगुप्त के विदू Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034974
Book TitleNagri Pracharini Patrika Part 15
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShyamsundardas
PublisherNagri Pracharini Sabha
Publication Year1935
Total Pages526
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size34 MB
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