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(१२) विविध विषय (१) पुरातत्त्व
[१] इस पत्रिका के भाग १३, अंक २, पृष्ठ २३७ में "चंद्रगुप्त द्वितीय और उसके पूर्वाधिकारी"शीर्षक एक लेख लिखा गया था। उसमें यह बताया गया था कि खस लोगों ने रामगुप्त को हिमालय प्रदेश के किसी किले में घेर लिया। रामगुप्त उन्हें हरा न सका और संधि चाहने लगा। शत्रु ने रामगुप्त से उसकी रानी ध्रवस्वामिनी देवी को माँगा। राजा बड़े संकट में पड़ा पर मंत्री की सलाह से रानी देने को राजी हो गया। चंद्रगुप्त उस समय युवावस्था में था। उसने प्रार्थना की कि रानी के बदले में मैं भेजा जाऊँ और वह भेजा गया। खसाधिपति जब उससे रात्रि को एकांत में मिलने गया तब चंद्रगुप्त ने उसे मार डाला और इस प्रकार रामगुप्त की जीत हुई। संस्कृत लेखकों ने चंद्रगुप्त पर अपने भाई के मार डालने का और उसकी खो के ले लेने का दोषारोपण किया पर विशाखदत्त ने मुद्राराक्षस में उसे बंधुभृत्य लिखा है इसलिये इस दोषारोपण में शंका मालूम होती है। यह सब कथा सन् ३७५-८० ई० के लगभग की है और (१) बाण (लगभग सन् ६२० ई०), (२) अमोघवर्ण (सन् ८७३ ई०), (३) राजशेखर (लगभग सन् ६०० ई०), (४) भोज ( सन् १०१८-६० ई०), (५) अबुलहसनअली, (६) टीकाकार शंकर ( सन् १७१३ ई.) के आधार पर पत्रिका में लिखी गई थी। ___ मार्च १६३४ के इंडियन हिस्टारिकल कार्टरली में मिस्टर मीराशो (नागपुर) ने "चंद्रगुप्त विक्रमादित्य और गोविंद" शीर्षक एक लेख
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