________________
नागरीप्रचारिणी पत्रिका समानुभूति की इस भूमिका में काबा काशी हो गया और राम रहीम । इस विचारधारा ने अाँधो की तरह आकर मनुष्य और मनुष्य के बीच के भेद उड़ा दिए । उस जगत्पिता परमात्मा की सृष्टि में सब बराबर हैं, चाहे वह हिंदू हो, चाहे मुसलमान, चाहे कोई अन्य धर्मावलंबी। इस प्रकार अनस्ति भेद-भावों के कारण मनुष्य के पवित्र रक्त से भूमि को व्यर्थ रँगने की मूर्खता स्पष्ट हो गई। ___जब जाति तथा धर्म के विभेद, जिनके साथ की कटु स्मृतियाँ अभी ताजी थीं, इस प्रकार दूर कर दिए जा सकते थे तो कोई कारण न था कि वर्ण-भेद को भी क्यों न इसी तरह मिटा दिया जाय। आत्मा और परमात्मा की एकता को अनुभव करनेवाले वेदांती के लिये तो वर्ण-भेद मिथ्या पर आश्रित था। भगवद्गीता के अनुसार तो वास्तविक पंडित विद्या-विनय-संपन्न ब्राह्मण, गाय, हाथी, कुत्ते और श्वपाक ( चौडाल ) में कोई भेद नहीं समझतारे , किंतु इसका यह अभिप्राय कदापि नहीं कि परंपरागत व्यवस्था में वेदांती कोई परिवर्तन उपस्थित करना चाहता था। भेद के न रहने पर भेद न समझने में कोई अर्थ नहीं। वेदांत की विशेषता इसमें है कि व्यावहारिक जगत् में इन सब भेदेो के रहते भी वह पारमार्थिक जगत् में उनमें कोई भेद नहीं मानता। अगर गीता कहती कि पंडित पंडित में कोई भेद नहीं है तो उससे कोई क्या समझता। वेदांत ब्राह्मण और शूद्र के बीच के भेद को उसी प्रकार व्यावहारिक तथ्य के रूप में ग्रहण करता है जिस प्रकार गाय, हाथी और कुत्ते के बीच के अंतर को। कौन कह सकता है कि इन
--. - .... - -. .--- -.
(१) काबा फिर कासी भया, राम भया रही ।-क. प्र., पृ० ५५, १०। (२) विद्या-विनयसंपन्ने ब्राह्मणे गवि हस्तिनि ।
शुनि चैव श्वपाके च पंडिताः समदर्शिनः ॥-५, १८
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
www.umaragyanbhandar.com