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________________ चिह्नांकित मुद्राएँ ३३७ सात चिह्न अंकित हैं जो महत्त्व के हैं ( देखिए चित्र ४ ) । आरंभ में एक वृक्ष तीन पत्तों का चौकोर वेष्टनी के भीतर, (२) चार स्तंभों पर एक भंडारघर दुहरे छप्परवाला, ( ३ ) एक भाला या तीर या राजचिह्न की प्रकृति का, (४) एक स्तूप जिसे पं० भगवानलाल इंद्रजी ने मेरु बताया था । यहाँ यह बताना आवश्यक है कि पटना में डाक्टर स्पूनर द्वारा चंद्रगुप्त के महल की जो खुदाई हुई थी उसमें यह स्तूप का चिह्न महल के एक पाषाण-स्तंभ और मिट्टी के बर्त्तनों पर भी खुदा मिला था । (५) मुद्रा तत्त्व- विदों का वृषभवाला चिह्न, (६) पत्रहीन तीन डालियों वाला वृक्ष (७ नं० २) सरीखा दूसरा भंडार गृह । इन सबका जो कुछ अर्थ हो, पर यह तो स्पष्ट ही है कि प्राय: ये ही या कुछ थोड़े बदले से चिह्न बहुधा सब चिह्नांकित मुद्रा पर भी दो दो तीन तीन चार चार पाए जाते यह बात ध्यान में रखनी चाहिए कि उक्त ताम्र-लेख में किसी राजा या अधिकारी के हस्ताक्षर या नाम नहीं हैं, जिससे अनुमान होता है कि ये सात चिह्न ही किसी राज्याधिकारी या राजसंस्था की परिचित मुद्रा या हस्ताक्षर का काम देते थे । हैं । कौटिल्य अपने अर्थशास्त्र (२-१२-२७) में "लक्षणाध्यक्ष" शब्द का व्यवहार करता है । भट्ट स्वामी टीकाकार लक्षण का अर्थ 'मुद्रा के चिह्न' करता है । लक्षणाध्यक्ष से टकसाल के अधिकारी का अर्थ होता है । उसका काम "रूप्यरूपं" अथवा चाँदी का रुपया बनाने का था । दूसरे स्थान (२-१४-७) में लिखा है - "आत्रेशनिभिः सुवर्णपुद्गललक्षणप्रयेागेषु तत्तज्जानीयात्" । इसका अर्थ यह है कि टकसाल के कारीगरों द्वारा सरकारी सुनार सुवर्ण, पुद्गल अर्थात् मिलावट की धातु और लक्षणों के प्रयोगों का हाल जाने। इससे सिद्ध होता है कि लक्षण या चिह्न खास अर्थ से अंकित किए जाते थे । इसलिये यह समझना अनुचित न होगा कि शोहगोरा प्लेट या ताम्रपत्र पर २२ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034974
Book TitleNagri Pracharini Patrika Part 15
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShyamsundardas
PublisherNagri Pracharini Sabha
Publication Year1935
Total Pages526
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size34 MB
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