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________________ ३३६ नागरीप्रचारिणी पत्रिका चिह्न अंकित होते हैं। कभी कभी उसी प्रकार दो चिह्न एक साथ ही बदलते हैं। यह सब परिवर्तन क्रमानुसार नियमानुकूल होता दीख पड़ता है। तक्षशिला से मिले ६३ और भारत के अन्यान्य भागों से प्राप्त ३० सिक्कों के अध्ययन से जान पड़ता है कि ये सब तीन प्रधान विभागों के हैं, एक विभाग पर सामने ५ चिह्न हैं जो विशेष करके इन सब सिक्कों में मिलते हैं, चाहे वे तक्षशिला, लाहोर, दिल्ली, मथुरा, नागपुर, इंदौर कहीं से भी क्यों न प्राप्त हों। ये चिह्न किसी नियमानुसार अंकित हुए हैं जिनका अर्थ अभी तक पूरा पूरा समझ में नहीं आया है। नियमानुसार ही इनमें परिवर्तन भी हुआ है। कदाचित् हर बार बनाते समय कुछ परिवर्तन किया गया हो। अन्यान्य प्रकारों को ए (A) और एस (8) प्रकार (चित्र ३ और ५) बताया गया है। ___ अब यह देखना चाहिए कि इस विषय पर और कहीं से भी कोई प्रकाश पड़ता है या नहीं और ये चिह्न और कहीं भी पाए जाते हैं या नहीं। कोई ६० वर्ष हुए, गोरखपुर जिले के शोहगोरा ग्राम में एक मनुष्य को ब्राह्मी अक्षरों का एक ढला हुआ ताम्रलेख (चित्र ४ देखिए ) अपने घर की नींव खोदते समय मिला था जिसका वर्णन इस पत्रिका के दूसरे स्थान में किया गया है। इसका अध्ययन कई विद्वानों ने किया है। इसका परिमाण २३ ई०४१४६०४ ई. है। इसमें आदि मौर्य-काल के ब्राह्मी अक्षरों में चार रेखाएँ लिखी हैं। इसका समय ई० पू० ३२० के लगभग का है। इसके चार कोनों में चार छिद्र हैं। एक प्रकार का यह इश्तहार है। उसमें लिखा है कि इन भंडार-गृहों में आश्रय और सहायता जरूरत के अनुसार दी जायगी न कि मदैव के लिये। इस पत्र के आदि में Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034974
Book TitleNagri Pracharini Patrika Part 15
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShyamsundardas
PublisherNagri Pracharini Sabha
Publication Year1935
Total Pages526
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size34 MB
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