________________
>
<
चिह्नांकित मुद्राएँ
३३५ ५-नंदी दाहनी ओर मुख करके खड़ा है। उसके सामने सिर के नीचे वृषभराशि की सी आकृति बनी है। ५ सिकों पर यह प्राकृति पूरी पूरी बनी है। बाकी मुद्राओं पर अंशत: या दूसरी आकृतियों पर छपी हुई है ( देखिए, चित्र १ बी का पांचवा चिह्न और चित्र ५)।
इन १४ मुद्राओं के पिछले भाग पर एक ऐसा चिह्न अंकित है जिसे कनिंघम साहब ने तक्षशिला का चिह्न बताया है ( देखिए, प्लेट ५, प्राकृति बी, पुश्त पर)। प्राय: सभी १४ मुद्राओं पर यह पूरा पूरा अंकित है पर कहीं कहीं घिस गया है। ऊपर लिखी १४ मुद्राओं ( चित्र १ के बो वर्ग में ) के अध्ययन से स्पष्ट है कि ये सब एक ही समय और एक ही स्थान पर अंकित हुई थीं। संभव है कि एक एक कारीगर एक एक चिह्न ही अंकित करता रहा हो। यदि कनिंघम साहब की कल्पना सत्य है तो ये सब तक्षशिला-टकसाल के, एक ही समय के छपे, सिक्के हैं ।
दूसरे तीन सिक्के इसी वर्ग के हैं और उन्हें चित्र १ में, बी-१ वर्ग में, बताया गया है। इनकी पीठ पर भी तक्षशिला-चिह्न अंकित है
और सामने ५ चिह्न हैं-सूर्य, चक्र, मेरु, पत्रहीन वृक्ष, किंतु पाँचवें चिह्न में नंदी के स्थान में चार खंभों पर स्थित फूसवाला घर बना है। इसे थियोबेलु साहब ने भी अपनी पैंतीसवी आकृति में स्वीकार किया है। इन बी वर्ग के सिक्कों का विशेष महत्त्व यह है कि उनसे उनके तथा इस क्रम के दूसरे सिक्कों के काल का निर्णय होता है ( देखिए, चित्र १ के बी, बी-१, बी-२, बी-३, बी-४, बी-५
और चित्र ५ भी)। इन सबके निरीक्षण से ज्ञात हो जायगा कि प्रत्येक प्रकार में क्या क्या परिवर्तन हुआ है। यह देख पड़ेगा कि कोई एक विशेष चिह्न कई बार बदलकर उसके स्थान पर दूसरे दूसरे
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
www.umaragyanbhandar.com