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नागरीप्रचारिणी पत्रिका
पतली, और कोई छोटी और मोटी पर गोल या चौकोर हैं । उनमें प्राय: पाँच चिह्न एक ओर अंकित हैं । दो में छ: चिह्न हैं, पर ऐसा जान पड़ता है कि छठा चिह्न दूसरी ओर अंकित होना था और भूल से सामने आ गया है । कहीं कहीं एक ही चिह्न दो बार अंकित हो गया है । सब मुद्राओं का वर्गीकरण करने पर ये दस विभाग में विभाजित होती हैं 1 उनके और भी उपविभाग है । नं० १, २, ३, ४, ५ चित्रों के देखने से इस बात का ज्ञान हो जायगा । जो चिह्न अंकित है वे ये हैं—
१ - सूर्यचिह्न (चित्र १, नंबर १ ) - इसमें एक वृत्त के प्रासपास किरणें हैं और बीच में धुरी का चिह्न है । पर यह चिह्न मुद्राओं में बहुत कम, किंतु पूरा पूरा अंकित हुआ है ।
२ - गूढ़चक्र ( चित्र १, नंबर २ ) - इसमें तीन छोटे वृषभराशिचिह्न और तीन पत्तों के या बाण के लोहे के समान चिह्न, एक प्रकार के पश्चात् दूसरे प्रकार का एक चिह्न, इस तरह एक छोटे वृत्त के आसपास अंकित रहते हैं । यह चिह्न पूरा पूरा एक ही मुद्रा पर छपा है, बाकी पर अंशत: ।
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३ – मेरु या पर्वत सा चिह्न जो एक रेखा पर दो महराबें या कमान खींचकर, उस पर तीसरी महराब रखकर और उसके ऊपर श्रर्द्धचंद्र रखकर बनाया जाता है । यह चिह्न ६ मुद्राओं पर पूरा बना है, बाकी पर अंशत: ।
४ - बिना पत्तों का वृक्ष, जिसमें तीन तीन टहनिये वाली तीन डालियाँ बनी हैं । यह पूरा चिह्न बहुत कम सिक्कों पर मिलता है । यह पाटला वृक्ष का चिह्न हो सकता है ।
(१) इस श्रीमान् जायसवालजी ने चंद्रगुप्त का राजांक निश्चित किया है; क्योंकि यह चंद्रगुप्त के स्तंभ पर और उस काल के सरकारी मिट्टी के बरतनों पर अंकित मिला है ।
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