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नागरीप्रचारिणी पत्रिका युक्त सिक्के उस समय 'पुराण' अर्थात् पुराने कहलाने लगे थे। उन्हें धरण भी कहते थे। सोने के सिक्कों को सुवर्ण या निष्क कहते थे और तांबे के सिक्कों को कार्षापण।
उत्तर और दक्षिण भारत में इस प्रकार के हजारों चाँदी के प्राचीन सिक्के मिले हैं जिनमें ऐसे अंक ही चिह्नित हैं। उन्हें मुद्रा-तत्त्व-विद् लोग अंक-चिह्न-युक्त ( Punch-marked ) सिक्के कहते हैं। तक्षशिला के राजा अांभी ने इसी प्रकार के चाँदी के सिक्के सिकंदर को भेंट में दिए थे। पाणिनि के समय में भी सिक्कों का चलन था, क्योंकि रूप्य शब्द को उसने "रूपादाहत" के अर्थ में बताया है। अंक-चिह्न-युक्त ( Punch-marked ) सिक्कों में प्रत्येक चिह अलग अलग अंकित किया जाता था। पीछे से सब चिह्न एक ही ठप्पे से एक साथ ही अंकित किए जाने लगे और इससे आगे बढ़कर सब चिह्न सहित मुद्राएं ढाली जाने लगीं। इन आदिम अंक-चिह्न-युक्त मुद्राओ की तौल हिंदू ग्रंथों (जैसे कौटिल्य ) में लिखी तौल से मिलती थी। ये सिक्के सैस्तान, अफगानिस्तान, सीमांत प्रदेश, पंजाब, मध्यभारत, उत्तर और दक्षिण भारत, बिहार,बंगाल, गुजरात, कोयम्बटूर और सीलोन सब जगह मिलते हैं। इन सिक्कों के चिह्नों का मतलब अभी तक किसी को समझ नहीं पड़ा था। यह नहीं जान पड़ता था कि इनमें से कोई मागे पोछे समय के हैं या भिन्न भिन्न देशों के हैं इत्यादि। बनारस के विज्ञान-कला-विशारद बाबू दुर्गाप्रसादजी, बी० ए०, (मेंबर न्यू मिस्मैटिक सोसाइटी और हिंदू-विश्वविद्यालय की कोर्ट सभा के सदस्य) प्राचीन मुद्रा के बड़े उत्साही शोधक हैं। भापके पास प्राचीन और अर्वाचीन मुद्राओं का संग्रह भी भारत में प्रायः अद्वितीय सा हो है। बहुत परिश्रम करके आपने इन मुद्रामों में अंकित चिह्नों का अध्ययन करके अलग अलग प्रकार के चिह्नों का
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