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(११) चिह्नांकित मुद्राएँ (Punch-marked coins)
[ लेखक - रायबहादुर पंड्या बैजनाथ, काशी]
बहुत ही प्राचीन काल में प्रादिम मनुष्यों को अपने परिवार के निर्वाहार्थ प्रत्येक वस्तु का स्वयं ही उत्पादन करना पड़ता था । इससे आगे बढ़कर मनुष्य अपनी अपनी पैदा की हुई वस्तुओं का दूसरी आवश्यक वस्तुओं से बदला करने लगा । इसमें भी असुविधा होने के कारण किसी प्रकार के सिक्के का चलन प्रारंभ हुआ। शुरू में कौड़ियों सरीखी वस्तुओं से काम लिया गया । पीछे से धातुओं का उपयोग होने लगा, और इस प्रकार मुद्रित धन का व्यवहार हुआ ।
भारतवर्ष में मुद्रित धन का व्यवहार बहुत पुराना है। ऋग्वेद में लिखा है कि ऋषि कतवन ने किसी राजा से सौ निष्क लिए । निष्कों के बने कंठहार का भी वर्णन है । बौद्धकाल में श्रावस्ती के सेठ अनाथपिंडिक ने बौद्ध संघ के लिये जेतवन की एक जमीन का मूल्य उस पर मुद्रा बिछाकर दिया था । नगौद राज्य में बरहूत स्तूप पर इस कथा का चित्र है । वहाँ जमीन पर मनुष्य चौकोन सिक्के बिछा रहे हैं । बुद्धगया की वेष्टनी पर भी यही चित्र है । इस प्रकार सिद्ध होता है कि भारत के सबसे प्राचीन सिक्कों का आकार प्रायः चौकोर होता था। समस्त भारत में चाँदी और ताँबे के जो सब अंकचिह्न युक्त ( Punch marked ) पुराने सिक्के मिले हैं उनमें से अधिकांश चौकोर ही हैं। ईसा की द्वितीय शताब्दी से, शुंग- काल से, सिक्कों में राजाओं के और उस काल के पूर्व के बहुत पुराने चाँदी के केवल अंक -चिह्न -
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नाम अंकित होने लगे थे
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