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नागरीप्रचारिणी पत्रिका भरि करि खीर सुनार गिन्ना-रे
रघुमणि रामक हस्त-रे देले । महाप्रभु से ! -'सोने की कटोरी में (दूध) भरकर उसने रघुमणि राम के हाथ में दिया।'
भूक-रे कटाऊथीले लईखन कुड़िया ___ सीताया देखी श्रासी ताकु देले नड़िया । महाप्रभु से !
-'भूखा लक्ष्मण कुटिया में झाड़ दे रहा था। सीता ने उसे देखा तो उसे एक नारियल दे दिया।'
अभागा लईखन श्राकुले कांदीले;
एहा छाड़ी श्राऊ किछी करि न पारीले ! महाप्रभु ये! –'प्रभागा लक्ष्मण व्याकुल होकर रोने लगा। और कर ही क्या सकता था ?'
सुख के दिनों में भी सीता को अपनी माँ की याद माया करती थी, यह बात नीचे के गीत से प्रतीत होती है
सरि गला दीप-र तेल कि परि दीप जालोवी । महाप्रभु से ! तेल प्राणी वाकु जावो हे राम ! से तेल दोप-रे ढालीवी । महाप्रभु से ! सुनार दीप-रे चन्दन तेल सीताया दीप जालछी । महाप्रभु से ! दीप जाली जाली सीताया।
मां-घर कथा माल्छी । महाप्रभु से ! —'तेल खतम हो गया ! मैं दीपक कैसे जलाऊँ ? 'हे राम ! जाओ, तेल लाओ। मैं उस तेल से दीपक जलाऊँगी।
'सोने का दीपक है और चंदन का तेल। सीताजो दीपक जला रही हैं।
दीपक जलाते जलाते सीताजी को अपने माता-पिता का घर याद आ रहा है।'
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