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________________ उड़िया ग्राम-साहित्य में राम-चरित्र ३२६. -'लक्ष्मणजी अयोध्या में एक कपिला गाय लाए ।' ताहा देखी सीता रामंकु कहिले; प्राणीवाकु से परि गाई । मेो राम रे ! -'उसे देखकर सीता ने राम से कहा-मेरे लिये भी ऐसी ही एक गाय ला दो।' से परि गाई कुयाड़े न पहिले खोजी खोजी राम होईलेन बाई । मो राम रे ! -'वैसी गाय कहीं भी न मिली । राम खोज खोजकर थक गए ।' एहा जाणी सीता कांदीवाकु लागीले; अरु बस्सी थाई भात पकाई । मेो राम रे ! -'यह जानकर सीताजी रोने लगीं। उन्होंने अपना भोजन दूर फेंक दिया। वे उदास होकर बैठ गई।' एहा जाणी लईखन सीतांकु कहिले; काही कि कांछीछो छारकथापाई । मो राम रे ! -'यह जानकर लक्ष्मण ने सीता से कहा-जरा सी बात के लिये क्यों रोती हो?' रामंक पाई ए देह धरिली तुम्भरी पांई प्राणीछी ए गाई । मो राम रे ! लक्ष्मण ने सीता से कहा-'मैंने यह शरीर राम की सेवा के लिये ही धारण किया है और तुम्हारे लिये ही मैं यह गाय लाया हूँ।' लक्ष्मण के ये वचन कितने सुंदर हैं ! इस काल्पनिक कथा द्वारा ग्राम-वासियों ने लक्ष्मण को कितने मधुर रूप में चित्रित किया है।' मलिया चन्दन प्राणी सीता तीया कले वेगे कपिला गाई-र खीर तताईले । महाप्रभु से ! -'मलय चंदन की लकड़ी लाकर सीताजी ने प्राग जलाई और जल्दी जल्दी कपिला गाय का दृध गरम किया ।' Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034974
Book TitleNagri Pracharini Patrika Part 15
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShyamsundardas
PublisherNagri Pracharini Sabha
Publication Year1935
Total Pages526
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size34 MB
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