________________
३२८
नागरीप्रचारिणी पत्रिका -'लक्ष्मणजी मृत्यु-शय्या पर पड़े हैं। राम रो रहे हैं । 'हे कृषक ! तुम्हारे मन में क्या जरा भी दु:ख नहीं है ?' राम के दुःख में किसान भी दुखी हो उठा है।
कुछ गीतों में राम के घर में गाएँ दिखाई गई हैं। सचमुच उन दिनों घर घर गाएँ होती थीं तो राम के घर भी अवश्य रही होगी। यदि केवल इतना ही कह दिया जाता कि राम के घर में गाएँ थीं तो कदाचित् अधिक रस न आता। यहाँ लक्ष्मण की गाय अधिक दूध देती है। राम की गाय का दूध सूख जाता है। लक्ष्मण सीताजी के लिये कपिला गाय लाते हैं। सीताजी राम के लिये तो चंदन की लकड़ी पर दृध गरम करती हैं परंतु लक्ष्मण को नारियल देकर ही उनका मुँह मीठा करने का यत्न करती हैं। इस प्रकार के उतार-चढ़ाव की कल्पना हमें राम के घर में ले जाती है और हम राम की छोटी से छोटी बात से परिचित हो जाते हैं ।
राम लईखन दुई गोटी भाई दुई भाई कीणीले जे...कपिला गाई लईखनंक गाई बेशी खीर देला रामक गाई-र खीर सूखी गला कांदूछति सीता ठाकुराणी हे...हलिया...
कि बुद्धि करिबे से......॥ -'राम और लक्ष्मण दो भाई थे। 'दोनों भाइयों ने दो कपिला गाएँ खरीदीं।
'लक्ष्मण की गाय अधिक दूध देती रही और राम की गाय का दूध सूख गया। 'हे किसान ! सीता ठाकुराणी रो रही हैं । बेचारी क्या करें ?'
प्राणीले लईखन अयुध्या पुरी कु; गोटिये कपिला गाई । मो राम रे!
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
www.umaragyanbhandar.com