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उड़िया ग्राम-साहित्य में राम-चरित्र ३२७ दूरु देखी सीता अईला धाई ।
धरि पकाईबा राम र हलकु ॥ मो बाईधन ॥ -दूर से देखकर सीताजी दौड़ती हुई आई और राम का हाथ पकड़ लिया ।'
कि पाई धाईछो खजूरी गच्छ कु ।
बइखन ईहा देखी कि कहिबे तुम्भंकु ॥ ___-'सीताजी कहती हैं-खजूर के वृक्ष की तरफ क्यों जा रहे हो? लक्ष्मण देखेगा तो क्या कहेगा ?'
उड़ीसा में खजूर के वृक्ष बहुत होते हैं। खजूर का रस शराब के रूप में पिया जाता है। प्रायः पुरुष ही इसका सेवन करते हैं, खियाँ नहीं। किसी पन्नी ने राम के नाम से अपने पति से नशा छोड़ने की प्रेरणा की है। देखिए लक्ष्मणजी चटनी के कितने शौकीन हैं
अंब कसी तोली लईखन प्राणीले सीताया ठाकुराणी चटनी बाटीले रघुमणि राम खाईछंति हलिया है... टिकिए चटनी मोते देयो प्राणी हो...सीताया ठाकुराणी
चटणी गल सरी लईखन कांदूछति जे...॥ —'लक्ष्मण कच्चे आम लाया और सीताजी ने चटनी पीसी । 'हे किसान ! सारी की सारी चटनी राम खा गए। 'लक्ष्मण ने कहा-थोड़ी सी चटनी मुझे भी दे दो। 'चटनी खतम हो गई है। लक्ष्मणजी रो रहे हैं।' लक्ष्मणजी मृत्यु-शय्या पर पड़े हैं। राम की अवस्था देखिए
मरणसेज-रे लईखन पछिंति । रघुमणि राम दुःख-रे कांदूछति मने कि तोर लो दुःख नाहीं कि हलिया हे...॥
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