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नागरीप्रचारिणी पत्रिका पत्नी को पति से जो प्रेम हो सकता है, उसकी यह पराकाष्टा नहीं तो क्या है ? सीताजी के मुख से राम के प्रति प्रेम का चित्रण करने में ग्रामीण कवि बहुत सफल हुआ है। राम की गरीबी देखिए
छिडा लूगा पिधी सीताया ठाकुराणी;
दौदरा गिना-रे भात खाई छति रघुमणि । महाप्रभु से ! -'सीता ठाकुराणी फटे-पुराने वस्त्र पहने हुए हैं और राम टूटे हुए बर्तन में भात खा रहे हैं ।
सीताया मुकछंति नुया लूगा पाई;
लइखन मुरुछंति पखाल् भात पाई । महाप्रभु से ! -'सीता नए कपड़ों के लिये तरस रही हैं और लक्ष्मण पखाल भात के लिये तरस रहे हैं।'
सीताया भुरुछंति नाक-गुणां पाई;
राम बूलूछति नडिया प्राणिवा पाई । महाप्रभु से ! -'सीताजी नाक-गुणों ( नाक का आभूषण जिसे उड़िया खियाँ बड़े चाव से पहनती हैं) के लिये तरस रही हैं और राम नारियल लाने के लिये भटक रहे हैं।'
कांदी कांदी सोता खीर दुहुछंति;
मा घर कथा मते पकाऊछति । महाप्रभु से ! -'सीताजी आँखों में आंसू भरकर दूध दुह रही हैं और अपनी माता के घर को याद कर रही हैं।' देखिए, राम खजूर का रस पीने जा रहे हैं
छिंदा लूगा पिंधी राम जाऊथीले;
खजूरी गष्छ र रस काढ़ीवाकु । मो बाईधन ! -'फटे-पुराने वस्त्र पहने राम खजूर की ओर जा रहे हैं।'
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