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उड़िया ग्राम-साहित्य में राम-चरित्र ३२५ 'प्रागे बैल है, पोछे लक्ष्मणजी हैं। राम जल्दी जल्दी घर पा रहे हैं।' ___ 'सीता का मन उदास है', इस वाक्य में कितनी करुणा भरी है। सीता ने अपनी कोठरी में दिया तक नहीं जलाया। वे अँधेरी कोठरी में बैठी हुई हैं। राम को घर लौटते देखकर उन्हें कितना आनंद हुमा होगा। अब राम और सीता के प्रेम की व्याख्या सुनिए
सीताया जेयूथीरे गुयागुंडी राम सेईथीरे पानने।
सीताया जेयू थीरे टोकई कुंढई राम सेईथीरे धानो॥ -'जहाँ सीता सुपारी है, वहाँ राम पान हैं। जहाँ सीता टोकरी है वहाँ राम धान हैं।'
राम हेला जल सीता हेला लहुड़ी राम हेला मेघ सीता हेला घडधड़ी। राम हेला दही सीता हेला लहुणी राम हेला घर सीता हेला घरणी ॥
-राम जल हो गए और सीता जल-तरंग । राम बादल बन गए और सीता बिजली की गरज । राम दही बन गए और सीता मक्खन । राम घर बन गए और सीता घरवाली ।' कितनी मीठी भावना है ! सीताजी कह रही हैं
मुकता मुकता बोलंति मुकता केंऊंठी मुकता के जाने ? जगत् समुका रघुमणि मुकुता ए परि मुकता के जाने ।
जीवण बिके मूकीणीली मुकता ए परि बिका किणां के जाने ?
-'मोती मोती तो सब कोई कहता है परंतु मोती है कहाँ, इसे कौन जानता है ?
_ 'जगत् सीप है और रघुमणि ( राम ) मोती हैं। ऐसे मोती की किसे खबर है ? _ 'मैंने अपना जीवन बेचकर यह मोती खरीदा है। ऐसी खरीदफरोख्त और कौन कर सकता है ?' Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
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