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________________ २८ नागरीप्रचारिणी पत्रिका आध्यात्मिक प्रांदोलन निर्गुण संप्रदाय के रूप में प्रकट हुमा तो मालूम हुमा कि केवल एक से सुख-दुःख, हर्ष-विषाद और आशा आकांक्षाओं के कारण ही हिंदू-मुसलमान एक नहीं हैं बल्कि उनके धार्मिक सिद्धांतों में भी, जो इस समय दोनों जातियों को एक दूसरे से बिलकुल विलग किए हुए थे, कुछ समानता थी। अनुभव से यह देखा गया कि समानता की बाते मूल तत्त्व से संबंध रखतो थों और असमानताएँ, जो बढ़ा बढ़ा कर बताई जाती थों और जिन पर अब तक जोर दिया जा रहा था, केवल बाह्य थीं। दोनों धर्मों के संघर्ष से जो विचार-धारा उत्पन्न हुई, उसी ने उस संघर्ष की कटुता को दूर करने का काम भी अपने ऊपर लिया। सम्मिलन की भूमिका का मूल आधार हिंदुओं के वेदांत और मुसलमानों के सूफी मत ने प्रस्तुत किया। सूफी मत भी वेदांत ही का रूप है जिसमें उसने गहरे रंग का भावुक बाना पहन लिया था और इस्लाम की भावना पर इस प्रकार व्याप्त हो गया था कि उसमें अजनवीपन जरा भी न रहा और उसे वहाँ भी मूल तत्त्व का रूप प्राप्त हो गया। इस नवीन दृष्टि-कोण को पूरी अभिव्यक्ति कबोर में मिली, जो मुसलमान मा-बाप से पैदा होने पर भी हिंदू साधुओं की संगति में बहुत रहा था। स्वामी रामानंद के चरणों में बैठकर उसने ऐकांतिक प्रेम-पुष्ट वेदांत का ज्ञान प्राप्त किया था और शेख तकी के संसर्ग में सूफी मत का। सूफी मत और उपासना-परक वेदांत दोनों ने मिलकर कबीर के मुख से घोषित किया कि परमात्मा एक और अमूर्त है। वह बाहरी कर्मकांड के द्वारा प्रप्राप्य है, उसकी केवल प्रेमानुभूति हो सकती है, कर्मकांड तो वस्तुत: परमात्मा को हमारी आँखों से छिपाने का काम करता है। सर्वत्र उसकी सचा व्याप रही है। मनुष्य का हृदय भी उसका मंदिर है, प्रवएव बाहर न भटककर उसे वहीं ढूंढ़ना चाहिए। तात्विक दृष्टि से वो Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034974
Book TitleNagri Pracharini Patrika Part 15
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShyamsundardas
PublisherNagri Pracharini Sabha
Publication Year1935
Total Pages526
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size34 MB
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