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________________ हिंदी काव्य में निर्माण संप्रदाय और तत्त्वज्ञान को बे-हिचक अपनी वाणी के द्वारा ऊँच-नीच सब में वितरित किया था तथापि वे बहुत दूर न जा सकते थे। इतना भी उनके लिये बहुत था। वेदांतसूत्र पर प्रानंद-भाष्य नामक एक भाष्य उनके नाम से, प्रचलित हुमा है। उसके शूद्राधिकार में शूद्र का वेदाध्ययन का अधिकार नहीं माना गया है। अभी इस भाष्य पर कोई मत निश्चित करना ठीक नहीं है। सामाजिक व्यवहार के क्षेत्र में हिंदू को मुसलमान से जो संकोच होता है तथा द्विज को शूद्र से, उसका निराकरण स्वामी रामानंद स्वतः कर सकते, यह प्राशा नहीं की जा सकती थी। यह उनके शिष्य कबीर के बाँट में पड़ा, जिसके द्वारा नवीन विचार. धारा को पूर्ण अभिव्यक्ति मिली। इस प्रकार मध्यकालीन भारत को एक ऐसे प्रांदोलन की आवश्यकता थी जिसका उद्देश्य होता उस अज्ञान और अंधपरंपरा का निराकरण जिसने एक ओर तो मुसलमानी ८. निर्गुण संप्रदाय ५ धौधता को जन्म दिया और दूसरी ओर शूद्रों के ऊपर सामाजिक अत्याचार को। यही दो बातें सांप्रदायिक ऐक्य और सामाजिक न्याय-भावना में बाधक थीं। दोनों धर्मों के विरक्त महात्मा किस प्रकार आपस में तथा दूसरे धर्मों के साधारणजन-समाज में स्वच्छंदतापूर्वक समागम के द्वारा सौहार्द, सहिष्णुता और उदारता के भावों को उत्पन्न करने का उद्योग कर रहे थे, यह हम देख चुके हैं। इस समागम में एक ऐसे आध्यात्मिक आंदोलन के बीज अंतर्हित थे जिसमें समय की सब समस्याएँ हल हो सकतीं; क्योंकि इसी समागम में दोनों धर्मवाले अपने अपने सधर्मियों की भूलें समझना सीख सकते थे,और यहीं दोनों धर्म एक दूसरे के ऊपर शांत रूप से प्रभाव डाल सकते थे। जब समय पाकर धीरे धीरे विकसित होकर यह Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034974
Book TitleNagri Pracharini Patrika Part 15
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShyamsundardas
PublisherNagri Pracharini Sabha
Publication Year1935
Total Pages526
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size34 MB
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