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नागरीप्रचारिणी पत्रिका के क्षेत्र में ही नहीं, बल्कि सामाजिक क्षेत्र में भी रामानंद ने कुछ उदारता का प्रवेश किया था। कहते हैं कि फैजाबाद के सूबेदार ने कुछ हिंदुओं को जबर्दस्ती मुसलमान बना लिया था। रामानंदजी ने इन्हें फिर से हिंदू बना लिया । ये लोग संयोगी कहलाते थे और अयोध्या में रहते थे। कहा जाता है कि अब भी ये अयोध्या के आस पास रहते हैं। भविष्य पुराण के अनुसार स्वामी रामानंदजी ने इस अवसर पर ऐसा चमत्कार दिखलाया जिससे इन लोगों के गले में तुलसी की माला, जिह्वा पर रामनाम और माथे पर श्वेत और रक्ततिलक अपने आप प्रकट हो गए। कुछ लोगों का तो यहाँ तक कहना है कि इन्होंने खान-पान के नियमों को भी कुछ शिथिल कर दिया। कहा जाता है कि मूल श्रीसंप्रदायवालों को स्वामी रामानंद जी की यह उदार प्रवृत्ति अच्छी न लगी और उन्होंने उनके साथ खाना अस्वीकार कर दिया। इससे रामानंद को अपना हो अलग संप्रदाय चलाने की आवश्यकता का अनुभव हुआ जिसे चलाने के लिये उन्हें अपने गुरु राघवानंद जी की भी अनुमति मिल गई। पर रामानंदजी ने भी परंपरागत कट्टर परिस्थितियों में शिक्षादीक्षा पाई थी। इसलिये यह प्राशा नहीं की जा सकती थी कि उन्मेष-प्राप्त शूद्रों की आकांक्षाओं को वे पूर्ण कर सकते। उनके शिष्यों में अनंतानंद प्रादि कट्टर मर्यादावादी लोग भी थे। शास्त्रोक्त लोक-मर्यादा के परम-भक्त गोस्वामी तुलसीदास भी रामानंद की ही शिष्य-परंपरा में थे। इसमें संदेह नहीं कि उन्होंने भक्त्युपदेशों
(१) म्लेच्छास्ते वैष्णवाश्चासन् रामानंदप्रभावतः। संयोगिनश्च ते ज्ञया अयोध्यायां बभूविरे ॥ कंठे च तुलसीमाला जिह्वा राममयी कृता । भावे त्रिशूलचिह्नच श्वेतरक्कं तदाभवत् । -भविष्य पुराण ( वेंकटेश्वर प्रेस, १८६६) अध्याय २१.
पृ० ३६२. प्रपाठक ३.
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