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________________ हिंदी काव्य में निर्गुण संप्रदाय २५ लहर जब उत्तर भारत में आई तो उस पर भी परिस्थितियों ने अपना प्रभाव डालना प्रारंभ कर दिया । परिस्थितियों का यह प्रभाव बहुत पहले गोरखनाथ ही में दृष्टिगत होने लगता है जिसने मुसलमान बाबा रतन हाजी को अपना शिष्य बनाया था, किंतु दक्षिण से आनेवाली वैष्णव धर्म की इस नवीन लहर में इसका पहले पहल दर्शन हमें रामानंद में होता है। रामानंद ने काशी में शांकर अद्वैत की शिक्षा प्राप्त की थी किंतु दीक्षा दी थी उन्हें विशिष्टाद्वैती स्वामी राघवानंद ने जो रामानुज की शिष्य परंपरा में थे। कहते हैं कि राघवानंद ने अपनी योग-शक्ति से रामानंद की प्रसन्न मृत्यु से रक्षा की थी । रामानंद ने उत्तरी भारत की परिस्थितियों को बहुत मच्छो तरह से समझा । उन्हें इस बात का अनुभव हुआ कि नीच वर्ण के लोगों के हृदय में सच्ची लगन पैदा हो गई है । उसे दबा देना उन्होंने अनुचित समझा । अतएव उन्होंने परमात्मा की भक्ति का दरवाजा सब के लिय खोल दिया । उन्होंने जिस बैरागी संप्रद्राय का प्रवर्तन किया था, उसमें जो चाहता प्रवेश कर सकता था । भगवद्भक्ति के क्षेत्र में उन्होंने वह भावना उत्पन्न कर दी जिसके अनुसार 'जाति पाँति पूछे नहिं कोई। हरि को भजै सो हरि का होई ॥' भक्ति के क्षेत्र में उन्होंने वर्ग-विभेद को ही नहीं, धार्मिक विद्वेष को भी स्थान न दिया और ऊँच-नीच, हिदू-मुसलमान सबका शिष्य बनाया । एक ओर तो उनके अनंतानंद, भवानंद आदि ब्राह्मण शिष्य थे जिन्होंने रामभक्ति को लेकर चलनेवाली वैष्णवधारा को कट्टरता की सीमा के अंदर रखा तो दूसरी ओर उनके शिष्यों में नीच वर्ण के लोग भी थे जिन्होंने कट्टरता के विरुद्ध अपनी आवाज उठाई। इनमें धन्ना जाट था, सैन नाई, रैदास चमार और कबीर मुसलमान जुलाहा । भविष्य पुराण से तो पता चलता है कि भक्ति Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034974
Book TitleNagri Pracharini Patrika Part 15
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShyamsundardas
PublisherNagri Pracharini Sabha
Publication Year1935
Total Pages526
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size34 MB
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