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नागरीप्रचारिणी पत्रिका वह दिन आवेगा जब हमारी जाति एक ऐसे बृहद्भातृमंडल में परिणत होजायगी, जिसे वर्ण-भेद का अत्याचार भी अव्यवस्थित न कर सकेवर्ण-भेद का वह अत्याचार जिसका विरोध कर कपिल ने प्राचीन काल में शुद्ध मनुष्य मात्र होना सिखाया था । भक्त तिरुप्पनाब्वार को नीच जाति का होने के कारण जब लोगों ने एक बार श्रीरंग के मंदिर में प्रवेश करने से रोक दिया तो उच्च जाति का एक भक्त उसे अपने कंधे पर चढ़ाकर मंदिर में ले गयारे ।
परंतु वैष्णव धर्म का पुनरुत्थान जिन कट्टर परिस्थितियों में हुआ, उन्होंने इस न्याय-कामना के अंकुर को पनपने न दिया । प्राळवारों के बाद वैष्णव धर्म की बागडोर जिन महानाचार्यों के हाथ में गई वे बहुत कट्टर कुलों के थे और परंपरागत शास्त्रों की सब मर्यादाओं की रक्षा करना अपना कर्तव्य समझते थे। शूद्रों के लिये भक्ति का अधिकार स्वीकार करना भी उन्हें खला। जिस प्रज्ञान की दशा में शूद्र युगों से पड़े हुए थे, उससे उनको उठने देना उन्हें अभीष्ट न था। रामानुजाचार्य ने उनके लिये केवल उस प्रपत्ति मार्ग की व्यवस्था की जिसमें संपूर्ण रूप से भगवान की शरण में जाना होता था, भक्ति मार्ग की नहीं। भक्ति से उनका प्रभिप्राय अनन्य चिंतन के द्वारा परमात्मा की ज्ञान-प्राप्ति का प्रयत्न था जिसकी केवल ऊँचे वर्णवालों के लिये व्यवस्था की गई थी। शूद्र इसके लिये अयोग्य समझा गया। ___किंतु उत्तर भारत में परिस्थितियां दूसरे प्रकार की थी। वहाँ ये बातें चल न सकती थी। मुसलमानी समाजव्यवस्था की तुलना में हिंदू वर्ण-व्यवस्था में शूद्रों की असंतोषजनक स्थिति सहसा खटक जाती थी। अतएव इन प्राचार्यों द्वारा प्रवर्तित वैष्णव धर्म की
(१)"तामिल स्टडीज़", पृ० ११६३६१. (२) कार्पेटर-थीज्म', पृ० ३७६.
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