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नागरीप्रचारिणी पत्रिका -'बचपन में एक बार गम ने हल को हाथ लगा दिया। पृथिवी के नव खंड हिलने लग गए।
'हे कृषक ! उस समय आकाश में बादल घिर आए थे।' देखिए, राम हल चला रहे हैं
चाला चालो बल्द, न करा मालानी बाजरी घड़िए हेले पाईवो मेलानी खाईवो कंचा घास जे...पीईवो ठंडा पानी हो...॥ बूढ़ा बल्द कु जे हलिया मंगु नाई राम बांधे हल् लईखन देवे माई
भाऊरी कि करिवे जे...सीताया दवे रोई जे...॥ . -'चलो चलो, हे बैल ! देर न करो ।
'जरा ठहरकर तुम्हें छुट्टी मिल जायगी। खाने को ताजा घास मिलेगा और पीने को ठंडा पानी।
'किसान बूढ़े बैल को पसंद नहीं करता ।
'राम हल चला रहे हैं। लक्ष्मणजी जुताई करेंगे। सीताजी के लिये और क्या काम है ? वे बीज बो देंगी।' __धान कूटनेवाली मशीन का नाम उड़िया भाषा में ढेंकी है।
की पर काम करते हुए जो गीत गाए जाते हैं उन्हें 'ढंकी-गीत' कहते हैं। नीचे एक ढेंकी-गीत दिया जाता है--
हीरा माणंकर धान ढंकी-रे अच्छो पणां राम लईखन दुई हेले मीका टणां। किए गो पेलीवो से धान, कहो मोते कि न जे......॥ राम बोलंति हे...सुनने लइखन पेलीवो धान तुम्मे कुटिवा मोर मन एते कहि ढेंकी ऊपरे बस्सी मांगे पान दि खडि पानरु खडिए खाईले राम तो से...
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