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उड़िया ग्राम-साहित्य में राम-चरित्र ३२१ • में पान बहुत होता है। यहाँ के राम पान भी खाते हैं। दुःख
की भी कुछ न पूछिए। एक बार सीताजी टूटे हुए बरतन में दूध दुहने बैठती हैं। सारा दूध नीचे बह जाता है। राम को मालूम होता है तो वे बहुत क्रोधित होते हैं। लक्ष्मण पेट भर भात भी नहीं खा पाते। राम नारियल तलाश करते करते थक जाते हैं। इस प्रकार राम-चरित्र, सरिता की भाँति, बहता चलता है । इसका बहाव जरा भी अप्राकृतिक नहीं है। यहाँ के राम किसी एक व्यक्ति के राम नहीं हैं; वे तो सारी जनता के राम हैं। ___कई एक महानुभावों को राम का यह अनोखा चरित्र कदाचित् थोड़ा-बहुत अखरेगा। वे कहेंगे-"इसमें इतिहास की साक्षी नहीं। आज तक किसी भी कवि ने इसका समर्थन नहीं किया। न तो रामायण में और न किसी अन्य काव्य में ही राम का यह रूप देखने में आया ।" ऐसे व्यक्तियों से हमारी प्रार्थना है कि वे केवल इतिहास की बात लेकर ही तर्क-वितर्क न करें। यदि वे ध्यानपूर्वक इसे काव्य-रस की कसौटी पर परखेंगे तो ग्रामवासियों की प्रतिभा की प्रशंसा किए बिना न रहेंगे।
ग्रामीण कवियों ने अपने हाथों से रंग तैयार किया है और अपनी ही कूची से राम का चित्र खींचा है। उन्होंने न तो रंग उधार लिया है और न कूची ही। संभव है, उसमें कुछ भद्दापन रह गया हो। पर उसका अवलोकन किया जा सकता है।
नीचे कुछ उड़िया ग्राम-गीत दिए जाते हैं जिनसे राम-चरित्र पर यथेष्ट प्रकाश पड़ता है। आइए, राम के शैशव का हाल सुनिए
पिल्ला टी दिनू राम घाईले नंगल नव खंड पृधि होईछी टलमल आकास कु घटिअछि जल्...हलिया है...॥
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