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नागरीप्रचारिणी पत्रिका जिनमें घी या चंदन के तेल का उपयोग किया जाता है, और गरीब इतने कि वे सीताजी को नए वन तक नहीं पहना सकते।
इन गीतों की गाते हुए ग्रामवासी अपना दुःख-दर्द भूल जाते हैं। राम के महान दु:ख के सामने उन्हें अपना दुःख बहुत कम प्रतीत होता है। जब राम भी इतने गरीब हो सकते हैं कि सीताजी को नया कपड़ा न दे सकें तब साधारण व्यक्ति की तो बात ही क्या रही।
___ उड़िया ग्राम-साहित्य का राम-चरित्र उतना ही मौलिक है जितना गन्ने का रस, न कम न अधिक। वह उतना ही प्राकृतिक है जितना जंगल का फूल । उसका सौंदर्य अनोखा तथा निराला है। यदि सब के सब भैौरे वाटिकाओं के पुष्पों पर मोहित हो गए हैं तो एक दिन वे इस फूल का पता पाकर इधर भी आ जायेंगे।
हमारे कई एक मित्रों के विचार में उड़िया ग्राम-साहित्य का राम-चरित्र ग्राम-वासियों का अपना चरित्र है जिसे उन्होंने राम का नाम देकर गाया है।
उड़िया ग्राम-साहित्य के राम अपने घर का काम-काज अपने हाथों से करते हैं। राम हल चलाते हैं, लक्ष्मणजी जुताई करते हैं
और सीताजी बीज बोती हैं। वे कपिला गाय का दूध पीते हैं जो चंदन की अग्नि पर गरम किया जाता है। उनके घर में सोने की कटोरियाँ हैं। कभी कभी उन्हें हल चलाते चलाते घर पहुँचने में देर हो जाती है। सीताजी व्याकुल हो उठती हैं और लक्ष्मण से कहती हैं-'जाओ, राम को बुला लाओ।' लक्ष्मणजी कच्चे प्राम लाते हैं। सीताजी चटनी पोसतो हैं। सब चटनी राम ही खा जाते हैं। लक्ष्मण को थोड़ी सी चटनी भी नहीं मिलती। उनका जी छोटा न हो तो क्या हो ? राम और लक्ष्मण दो कपिला गौएँ खरीदते हैं। राम की गाय का दूध सुख जाता है। लक्ष्मण की गाय बराबर दूध देती रहती है। उड़ीसा
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