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नागरीप्रचारिणी पत्रिका
के सात पुत्र थे ।' काम तो एक ही राजपुत्र से चल सकता है
परंतु माँ एक साथ सात पुत्रों की कल्पना करता है । सात भाइयों होनी चाहिए, नहीं तो कहानी में रस का आगे चलकर माँ कहती है- 'उस राजा के एक छोटी सी कन्या भी थी ।' इस प्रकार कथा आगे चलतो
की एक-आध बहन भी संचार नहीं हो सकता ।
होता जाता है, इस कथा के कथा - साहित्य में कोरी कल्पना से
रहती है 1 ज्यों ज्यों शिशु बड़ा
अनेक रूपांतर होते जाते हैं ।
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ही काम नहीं चलता- - कल्पना के साथ-साथ घटना भी अपना रंग दिखाती रहती है और इस प्रकार सात राजपुत्रों में से एक राजपुत्र कभी राम के रूप में और कभी युधिष्ठिर के रूप में कथा - साहित्य का नायक बनता रहता है ।
राम
राम का पुनीत चरित्र हर रंग में, हर रूप में, पूरे सोलह आने उतरा है । कदाचित् 'रामायण' की रचना के पूर्व ही राम चरित्र देश के एक सिरे से दूसरे सिरे तक विख्यात हो गया था । केवल प्रयोध्या के ही नहीं, सारे देश के राम बन गए थे । माताएँ अपने शिशुओं में राम की भावना करने लगी थीं । राम घर घर के राम बन गए थे । उनकी न्यायप्रियता तथा शूरवीरता की कहानियाँ देश के एक सिरे से दूसरे सिरे तक प्रचलित हो गई थाँ । इस प्रकार राम चरित्र ग्राम-कथाओं का था । ग्रामीण कवि उनका चरित्र-गान करके यश के भागी बनने लगे थे । विवाह - संगीत में वर की कल्पना करती हुई रमथियों के सामने राम की मूर्ति विराजमान रहती थी । राम चरित्र की सर्वप्रथम भूमिका निर्माण करने में ग्राम साहित्य का सबसे बड़ा हाथ था ।
विषय बन गया
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इस प्रकार
'वाल्मीकि' तथा 'तुलसीदास' के राम वन में जाकर भी किसी राजा से कम नहीं रहे । सीता हरण से पहले के बारह वर्ष, हमारी
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