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नागरीप्रचारिणी पत्रिका है, यह कोई जलाशय (=छोटी नदी, या बड़ा तालाब ) होगा। संभवत: वर्तमान ओडाझार, खडौबाझार सुतनुतीर को सूचित करते हैं। ऐसा होने पर वर्तमान खजुहा ताल प्राचीन सुतनु है।
अंधवन-श्रावस्ती के पास एक और प्रसिद्ध स्थान अंधवन था। संयुत्तनिकायट्ठकथा में
"काश्यप सम्यक्-संबुद्ध के चैत्य में मरम्मत के लिये धन एकत्र कराकर आते हुए यशोधर नामक धर्मभाणक आर्यपुद्गल की आँखें निकालकर, वहाँ ( स्वयं ) अंधे हुए पाँच सौ चोरो के बसने से...अंधवन नाम पड़ा। यह श्रावस्तो से दक्षिण तरफ गव्यूति भर दूर राजरक्षा से रक्षित (वन) था...। यहाँ एकांतप्रिय (भिक्षु)... जाया करते थे।"
फाहियान ने इस पर लिखा है
"विहार से चार 'ली' दूर उत्तर-पश्चिम तरफ एक कुंज है।... पहले ५०० अन्ध भिक्षु इस वन में वास करते थे, एक दिन इनके मंगल के लिये बुद्धदेव ने धर्मव्याख्या की, उसी समय उन्होंने दृष्टिशक्ति पाली। प्रसन्न हो उन्होंने अपनी अपनी लकड़ियों को मिट्टी में दबाकर प्रणाम किया। उसी दम वे लकड़ियाँ वृक्ष के रूप में,
और शीघ्र ही वन रूप में परिणत हो गई।......इस प्रकार इसका यह नाम ( अंघवन ) पड़ा। जेतवनवासी अनेक भितु मध्याह्न भोजन करके ( इस ) वन में जाकर ध्यानावस्थ होते हैं।"
इससे मालूम होता है....
(१) काश्यप बुद्ध के स्तूप से श्रावस्ती की ओर लौटते समय यह स्थान रास्ते में पड़ता था।
(२) श्रावस्ती से दक्षिण एक गव्यूति या प्रायः २ मील था । (१) स० नि०, २१:१०, अ. क०, ११४८ । (२) ch. XX.
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