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________________ जेतवन ख्याल हुआ-भगवान के दर्शन का यह समय नहीं है, भगवान् इस समय ध्यान में हैं।.. क्यों न...मल्लिका के प्राराम में चलू।" ये दोनों उद्धरण दीघनिकाय और मज्झिमनिकाय के हैं, जो कि त्रिपिटक के प्रत्यंत पुराने भाग हैं । इनसे हमें ये बातें और स्पष्ट मालुम होती हैं ( १ ) यह एक बड़ा आराम था, जिसमें ७०० या तीन हजार परिव्राजक निवास कर सकते थे। (२) नगर से जेतवन जानेवाले द्वार(= दक्षिण द्वार)कं बाहर था। (३) यहाँ बैठकर ब्राह्मण और साधु लोग नाना प्रकार की दार्शनिक चर्चाएँ किया करते थे। (४) बुद्ध तथा उनके गृहस्थ और विरक्त शिष्य यहाँ जाया करते थे। जेतवन के पीछे भाजीवकों की भी कोई जगह थी क्योंकि जातकटकथा में आता है "तब प्राजीवक जेतवन के पीछे नाना प्रकार का मिथ्या तप करते थे। उक्कुटिक प्रधान, वग्गुलिव्रत, कंटकाप्रश्रय पंचताप-तपन आदि।" परिव्राजकाराम का बनना रुक जाने से, जेतवन के बहुत समीप और कोई किसी ऐसे पाराम का होना संभव नहीं मालूम होता । शायद.जेतवन के पीछे की ओर खुली ही जगह में वे तपस्या करते रहे होंगे। सुतनु-तीर-संयुत्तनिकाय से पता लगता है, सुतनुतीर पर भी भिक्षुओं का कोई विहार था। 'तीर' शब्द से तो पता लगता (2) "आयुष्मान् सारिपुत्र ...( जेतवन से ) श्रावस्ती में पिड के लिये च जे ।...बहुत सबेरा है......( इसलिये) जहाँ अन्य तीथिकों, परिव्राजकों का प्राराम था वहाँ गए।" -अं०नि० ७.११, ७:२:८, १०:३७ । (२) जातकट्ठकथा १:१४:५।। (३) “एक समय आयुष्मान् अनुरुद्ध सावत्थी में सुतनु के तीर विहार करते थे।"-सं. नि०, २१:१:३। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034974
Book TitleNagri Pracharini Patrika Part 15
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShyamsundardas
PublisherNagri Pracharini Sabha
Publication Year1935
Total Pages526
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size34 MB
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