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नागरोप्रचारिणी पत्रिका उठाई-प्रावुसी ! सब तरह बिना ढंके हुए अचेलकों से यह निग्रंथ (=जैन) श्रेष्ठतर हैं, जो एक अगला भाग भी तो ढाँकते हैं, मालूम होता है ये सलज्ज हैं। यह सुन निर्मथो ने कहा-इस कारण से नहीं ढाँकते हैं, पांशु धूलि भी तो पुद्गल (=जीव) ही है। प्राणी हमारे भिक्षा-भाजन में न पड़ें, इस वजह से ढाँकते हैं।" एकशाटक और परिव्राजकों का जिक्र कर चुके हैं। इन सभी मतों के साधुओं के आराम श्रावस्ती के बाहर फैले हुए थे। ये अधिक. तर श्रावस्ती के दक्षिण और पूर्व तरफ में रहे होंगे, जिधर कि पूर्वागम और जेतवन थे चिंचा और सुंदरी के वर्णन से भी पता लगता है कि जेतवन की ओर तीर्थिकी के भी स्थान थे। इनमें समयप्पवादक तिदुकाचीर स्कसालक मल्लिका का प्राराम बहुत ही बड़ा था। हमने इसको चीरेनाथ के मंदिर की जगह पर निश्चित करने के लिये कहा है। दीघनिकाय में कहा है'पोट्टपाद' परिव्राजक समयप्पवादक . मल्लिका के आराम में तीस सौ परिव्राजको की बड़ी परिषद् के साथ निवास करता था।" अ. क० में-उस स्थान पर चंकि, तारुक्ख, पोखरसाति, "प्रादि ब्राह्मण, निग्रंथ, अचेलक, परिव्वाजक आदि प्रवजित एकत्र हो अपने अपने समय (= सिद्धान्त) को व्याख्यान करते थे; इसी लिये वह पाराम समयप्पवादक (कहा जाता था)...” (पृष्ठ २३८)
मज्झिम-निकाय में
समणमंडिकापुत्र उग्गहमाण परिव्राजक समयप्पवादक...... मल्लिका के प्राराम में सात सौ परिव्राजको की बड़ो...परिषद् के साथ वास करता था। उस समय पंचकंग गृहपति दोपहर को श्रावस्ती से भगवान के दर्शन के लिये निकला। तब पंचकंग स्थपति को
(.) दी. नि०, ।
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