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जेतवन क्यों सेठ, और भी दोष हमारी बेटी का है ?--नहीं आर्यो ! .. क्यों फिर निर्दोष को प्रकारण घर से निकलवाते हो ? उस समय विशाखा ने कहा-पहले मेरे ससुर के वचन से मेरा जाना ठीक न था। मेरे पाने के दिन मेरे पिता ने दोष शोधन के लिये तुम्हारे हाथ में रखकर (मुझे) दिया था। अब मेरा जाना ठीक है। यह कह, दासी दास को यान तैयार करने के लिये प्राज्ञा दी। तब सेठ ने उन कुटुंबिकों को लेकर कहा-अम्म! अनजाने मेरे कहने को जमा कर ।-तात, तुम्हारे क्षतव्य को क्षमा करती हूँ; किंतु मैं बुद्धशासन में अनुरक्त कुल की बेटी हूँ; हम बिना भिक्षुसंघ के नहीं रह सकती। यदि अपनी रुचि के अनुसार भिक्षु-संघ की सेवा करने पाऊँगी, तो रहूँगो।-अम्म ! तू अपनी रुचि के अनुसार अपने श्रमणों की सेवा कर ।
तब विशाखा ने निमंत्रित कर दूसरे दिन...बुद्धप्रमुख भिक्षुसंघ को बैठाया।...मेरा ससुर आकर दशवल को परोसे ( यह खबर भेजी)।...(मिगारसेठ ने बहाना कर दिया)...! पाकर दशवल की धर्मकथा को सुने...। मिगारसेठ जाकर कनात से बाहर ही बैठा ।... देशना के अंत में सेठ ने सेतापत्ति-फल में प्रतिष्ठित हो कनात को हटा...पंचांग से वंदना कर, शास्ता के सामने ही-'अम्म ! तू आज से मेरी मादा है'--यह कह विशाखा को अपनी माता के स्थान पर प्रतिष्ठित किया। तभी से विशाखा 'मिगार-माता' प्रसिद्ध हुई।"
तोथिंकाराम समयप्पवादक-परिव्वाजकाराम-पृष्ठ ३०३ में ५ प्रकार के अन्य तोर्थिक-जटिल, निग्रंथ आदि बतलाए हैं। अचेलक' एकदम नंगे रहते थे! प्रकथा में एक दिन भितुनो ने निग्रंथों को देखकर कथा
(i) ध० ए० २२:८, अ. क. ५७८ ।
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