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नागरीप्रचारिणी पत्रिका देख...'धिक, धिक्' निंदा करती चली गई।...नंगे श्रमणों ने सेठ की निंदा की-...क्यों गृहपति ! दूसरी नहीं मिली १ श्रमण गैरतम की श्राविका ( शिष्या ) महाकालकर्णी को किस लिये इस घर में प्रवेश कराया।...( सेठ ) प्राचार्यो ! बच्ची है...आप चुप रहें-यह कह नंगों को बिदा कर, आसन बैठ सोने की कछुल लेकर विशाखा द्वारा परोसे (खाद्य को ) भोजन करता था ।...उसी समय एक मधूकरीवाला भिक्षु घर के द्वार पर पहुँचा... वह...स्थविर को देखकर भी...नीचे मुँह कर पायस को खाता ही रहा। विशाखा ने... स्थविर को (कहा)-माफ करें भंते ! मेरा ससुर पुराना खाता है । उस ( सेठ ) ने अपने आदमियों से कहा...इस पायस को हटाओ, इसे (= विशाखा को) भी इस घर से निकालो यह मुझे ऐसे मंगल घर में अशुचि-खादक बना रही है...। विशाखा ने...कहा-तात ! इतने वचन मात्र से मैं नहीं निकलती। मैं कुंभदासी की भाँति पनघट से तुम्हारे द्वारा नहीं लाई गई हूँ। जीते मा बाप की लड़. कियाँ इतने मात्र से नहीं निकला करती,...पाठो कुटुंबिको को बुलाकर मेरे दोषादोष की शोध करा।।, सेठ ने आठ कुटुंबिको को बुलाकर कहा-यह लड़की सप्ताह भी न परिपूर्ण होते, मंगल घर में बैठे हुए मुझे अशुचि-खादक बतलाती है।...ऐसा है अम्म ?ताता! मेरा ससुर अशुचि खाने की इच्छावाला होगा, मैंने ऐसा करके नहीं कहा; एक पिंडपातिक स्थविर के घर-द्वार पर स्थित होने पर, यह निर्जल पायस भोजन करते हुए, उसका ख्याल (मन में ) नहीं करते थे। मैंने इसी कारण से-'माफ करोभंते ! मेरा ससुर इस शरीर से पुण्य नहीं करता, पुराने पुण्य को खाता है',...कहा-आर्य, दोष नहीं है, हमारी बेटी तो कारण कहती है, तुम क्यों क्रुद्ध होते हो ।... ( फिर कुछ और इलजामों के जाँच करने पर)-वह और उत्तर न दे, अधोमुख ही बैठ गया। फिर कुटुंबिको ने उससे पूछा
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