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नागरीप्रचारिणी पत्रिका __पृष्ठ २६४-६६ में दी गई वर्षावास की सूची के अनुसार प्रथम वर्षावास श्रावस्ती में बोधि से चौदहवें साल (५१४ ई० पू०) में किया ।
चूँकि अनाथपिडिक का निमंत्रण वर्षावास का था, इसलिये यह भी जेतवन के बनने का साल हो सकता है।
सातवाँ वर्षावास त्रयस्त्रिंश-लोक में बतलाया जाता है। उस वर्ष प्राषाढ़ पूर्णिमा (बुद्धचर्या पृष्ठ ८५) के दिन तथागत श्रावस्ती जेतवन में थे। इस प्रकार इस समय (५२१ ई० पू०) जेतवन बन चुका था।
सारांश यह कि जेतवन के बनने के सात समय हमें मिलते हैं(१) सोलहवें वर्ष (५१२ ई० पू०) से पूर्व (अट्ठकथा) पृ० २५६ । (२) पंद्रहवें" (५१३ ई० पू०) से पूर्व (अट्ठकथा) पृ० २६४ । (३) दसवें " (५१८ ई० पू०) से पूर्व (विनय सूत्र) पृष्ठ २६६ । (४) , , , (सूत्र ) पृ० २६८। (५) सातवाँ ( ५२१ ई० पू० ) से पूर्व (अट्ठकथा) पृ० २६६ । (६) द्वितीय ( ५२० ई० पू० ) ( विनय ) पृ० २६६ ।
(७) तृतीय ( ५२५ ई० पू० ) ( अट्ठकथा ) पृ० ३०० । __ इनमें पहले पाँच से हमें यही मालूम होता है कि उक्त समय से पूर्व किसी समय जेतवन तैयार हुआ, इसलिये उनका किसी से विरोध नहीं है।
पूर्वाराम जेतवन के बाद बौद्धधर्म की दृष्टि में दूसरा महत्त्वपूर्ण स्थान पूर्वाराम था। पहले हम पूर्वाराम की स्थिति के बारे में संक्षेप से विचार कर चुके हैं। पूर्वाराम और पूर्वद्वार के संबंध में संयुत्तनिकाय के और उदानरे के इस उद्धरण से कुछ प्रकाश पड़ता है।
(.) ३:२:१, पृ. २४, अ. क. २१६ । (२)६:२।
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