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________________ जेतवन ३०१ वहीं उन्होंने वर्षावास किया जो ऊपर की सूची से स्पष्ट है । वहीं सीतवन में अनाथपिडिक का जातकटुकथा के अनुसार श्रावस्ती आने की प्रतिज्ञा लेना, विनय के अनुसार वर्षावास के लिये निमंत्रण स्वीकार कराना होता है। इस प्रकार तथागत का जाना द्वितीय वर्षावास के बाद ( ५२६-५२५ ई० पू०) हो सकता है। ___ अब यहाँ दो बातों पर ही हमें विशेष विचार करना है-(१; विनय के अनुसार कपिलवस्तु से श्रावस्ती जाना और वहाँ जेतवन में ठहरना । (२) जा० अ० कथा के अनुसार कपिलवस्तु से राजगृह लौट आना,और संभवत:वर्षावास के बाद दूसरे वर्ष जेतवन में विहार तैयार हो जाने पर वहाँ जाना। यद्यपि विनय ग्रंथ की प्रामाणिकता अट्ठकथा से अधिक है, तथापि इसमें कोई संदेह नहीं कि कपिलवस्तु के जाने से पहले अनाथपिंडिक का तथागत से मिलना नहीं आता; इसी लिये कपिलवस्तु से श्रावस्ती जाकर जेतवन में ठहरना बिल्कुल ही संभव नहीं मालूम पड़ता। इसके विरुद्ध जातक का वर्णन सीतवन ले दर्शन के (द्वितीय वर्षा० के ) बाद जाना अधिक युक्तियुक्त मालूम होता है। विनय ने स्पष्ट कहा है कि अनाथपिंडिक ने वर्षावास के लिये निमंत्रण दिया, और इसी लिये तीन मास के निवास के लिये जेतवन के झटपट बनवाने की भी अधिक जरूरत पड़ी; इस प्रकार तथागत जेतवन गए और साथ ही वहीं उन्होंने वर्षावास भी किया-यह अधिक युक्तियुक्त प्रतीत होता है। यद्यपि वर्षावासों की सूची में तीसरा वर्षावास राजगृह में लिखा है, तो भी जेतवन बोधि के दूसरे और तीसरे वर्ष के बीच (५२६-५२५ ई० पू०) में बना जान पड़ता है। __ पृ० २६५ के अट्ठकथा के उद्धरण से मालूम होता है कि तीर्थको ने जेतवन के पास तीर्थकाराम प्रथम बोधि अर्थात् बोधि के बाद प्रथम पंद्रह वर्षों (५२७-५१३ ई० पू०) में बनाना आरंभ किया था। इससे निश्चित ही है कि उस (२१३ ई० पू०) से पूर्व जेतवन बन चुका होगा। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034974
Book TitleNagri Pracharini Patrika Part 15
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShyamsundardas
PublisherNagri Pracharini Sabha
Publication Year1935
Total Pages526
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size34 MB
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