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नागरीप्रचारिणी पत्रिका पुत्र के पास प्रव्रज्या देने के लिये भेजा । आयुष्मान सारिपुत्र के चित्त में हुआ, भगवान् ने प्रज्ञप्त किया है, एक को दो सामणेर अपनी सेवा में न रखना चाहिए । और यह मेरा राहुल सामणेर है ही...” अटकथा से स्पष्ट है कि यह यात्रा बोधि के दूसरे वर्ष में अर्थात् गया से वारा. णसी ऋषिपतन, वहाँ से राजगृह आकर फिर कपिलवस्तु जाना। इस प्रकार ५२६ ई० पू० में जेतवन मौजूद मालूम होता है । ___ जातकट्ठकथा में इसे इस तरह संक्षिप्त किया है-शास्ता' बुद्ध होकर प्रथम वर्षा० ऋषिपतन में बसकर,...उरुवेला को जा वहाँ तीन मास बस,...भिक्षुसंघ सहित पौष की पूर्णिमा को राजगृह में पहुँच दो मास ठहरे। इतने में वाराणसी से निकले को पाँच मास होगए।...फाल्गुण पूर्णिमा को उस (= उदायि) ने सोचा...अब यह (यात्रा का) समय है...। राजगृह से निकलकर प्रतिदिन एक योजन चलते थे।...( इस प्रकार ) राजगृह से ६० योजन कपिलवस्तु दो मास में पहुँचे ।...(वहाँ से) भगवान् फिर लौटकर राजगृह जा सीतवन में विहरे। उस समय अनाथपिडिक गृहपति...अपने प्रिय मित्र राजगृह के सेठ के घर जा, बुद्धोत्पत्ति सुन,...शास्ता के पास जा धर्मोपदेश सुन,...द्वितीय दिन बुद्ध प्रमुख संघ को महादान दे, श्रावस्तो आने के लिये शास्ता की प्रतिज्ञा ले...।
यहाँ विनय से जातकट्ठकथा का, कलिवस्तु से मागे जाने के स्थान में विरोध है। जातकट्ठकथा के अनुसार बुद्ध वहाँ से लौट.' कर फिर राजगृह पाए। लेकिन विनय के अनुसार राहुल को प्रवजित कर वे श्रावस्ता जेतवन पहुँचे। जातक के अनुसार बुद्ध की कपिलवस्तु की यात्रा बोधि से दूसरे वर्ष (५२६ ई. पू०) की फाल्गुन-पूर्णिमा को प्रारंभ हुई, और वे दो मास बाद वैशाख. पूर्णिमा को वहां पहुंचे। वहाँ से फिर लौटकर राजगृह आकर
(१) जातक, निदान ।
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