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________________ जेतवन २९६ जन्म से दहर (= तरुण) हैं, प्रव्रज्या से भी नए हैं।...भगवान्, माज से मुझे अपना शरणागत उपासक...धारण करें।" ____ यहाँ राजा प्रसेनजित् जेतवन में जाकर, निग्रंथ बातृ-पुत्र ( महावीर ) आदि का यश वर्णन करके, तथागत को उमर में कम और नया साधु हुमाकहता है, इससे मालूम होता है कि तथागत अभिसंबोधि ( ३५ वर्ष की आयु ) के बहुत देर बाद श्रावस्ती नहीं गए थे। उस समय जेतवन बन चुका था। 'दहर' कहने के लिये हम ४५ वर्ष की उम्र तक की सीमा मान सकते हैं। इस प्रकार पुराने सुत्तंत के अनुसार भी अभिसंबोधि से दसवें वर्ष (५१६ ई० पू०) से पूर्व ही जेतवन बन चुका था। ___महावग्ग में राजगृह से कपिलवस्तु, फिर वहाँ से श्रावस्ती, जेतवन का वर्णन पाया है-- "भगवान् राजगृह में... विहार करके...चारिका चरण करते हुए ...शाक्य देश में कपिलवस्तु के न्यग्रोधाराम में विहार करते थे।...फिर भगवान 'पूर्वाह्न समय,..पात्र चीवर लेकर जहाँ शुद्धोदन शाक्य का घर था वहाँ गए, और रखे हुए आसन पर बैठे। तब राहुलमाता देवी ने राहुल कुमार को कहा। राहुल ! यह तेरा पिता है, जा दायज्ज माँग।...राहुल कुमार यह कहते हुए भगवान् के पीछे पाछे हो लिया 'श्रमण, मुझे दायज्ज दो', 'श्रमण, मुझे दायज दो'। तब भगवान् ने आयुष्मान सारिपुत्र को कहा-तो सारिपुत्त तू राहुल कुमार को प्रत्रजित कर...। फिर भगवान् कपिलवस्तु में इच्छानुसार विहार कर श्रावस्ती की ओर चारिका के लिये चल दिए। वहाँ...अनाथपिंडिक के पाराम जेतवन में विहार करते थे। उस समय प्रायुमान् सारिपुत्त के उपस्थाक-कुल ने एक लड़के को आयुष्मान सारि. (१) पृ. २३ । (२) महावग्ग (सिंहल लिपि), ३११-१३ । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034974
Book TitleNagri Pracharini Patrika Part 15
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShyamsundardas
PublisherNagri Pracharini Sabha
Publication Year1935
Total Pages526
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size34 MB
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