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जेतवन
२६३ वन की गंधकुटो के पास माला के कूड़े में सुंदरी के शरीर को डाल दिया। (३) धूर्ती ने शराब के नशे में भंडा फोड़ दिया। (४) तीर्थकों को भी मनुष्य-वध का दंड मिला। यहाँ यद्यपि अन्य अंशों का समाधान हो सकता है, तथापि उदान का 'परिखा में गाड़ना' और अट्ठकथा का गंधकुटी के पास कूड़े में डालना, परस्पर विरुद्ध दिखाई पड़ते हैं। प्रारामों के चारों ओर परिखा होती थी, इसके लिये विनयपिटक में यह वचन है--"उस समय आराम में घेरा नहीं था, बकरी आदि पशु भी पौधों को नुकसान करते थे। भगवान् से यह बात कही। (भगवान ने कहा)-बॉस-वाट, कंटकी-वाट, परिखा-वाट इन तीन वाटों ( =रुंधान ) से घेरने की अनुन्ना देता हूँ।" यह परिखा आराम के चारों ओर होने से गंधकुटो के समीप नहीं हो सकती। दोनों का विरोध स्पष्ट ही है। ऐसे भी उदान मूल सूत्रों से संबंध रखता है, इसलिये उसकी, अट्ठकथा से अधिक प्रमाणिकता है। दूसरे उसका कथन भी अधिक संभव प्रतीत होता है। परिखा दूर होने से वहाँ आदमियों के आने-जाने का उतना भय न था, इसलिये खून करने का वही स्थान हत्यारों के अधिक अनुकूल था, बनिस्बत इसके कि वे गंधकुटी के पास उसे करें, जो मुख्य दर्वाजे के पास थी और जहाँ लोगों का बराबर आना-जाना रहता था। शरीर ढाकने भर के लिये मालाओं के ढेर का इतना गंधकुटो के पास जमा करके रखना भी अस्वाभाविक है।
हय न्-चाङ ने लिखा है
Behind the convent, not far, is where the Brahmachari herretics killed women and accused Buddha of the murder. ( The Life of Hiuen-Tsang. p. 93 ).
फाहियान ने इसके लिये कोई विशेष स्थान निर्दिष्ट नहीं किया है। (१) चुल्लवग्ग, सेनासन० ६, पृ० २५० ।
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