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नागरीप्रचारिणी पत्रिका श्रमणों का कर्म, ये अलज्जी, दुःशील, पापधर्म, मृषावादी, अब्रह्मचारी हैं। ...इनको श्रामण्य नहीं, इनको ब्रह्मचर्य नहीं। इनका श्रामण्य, ब्रह्मचर्य नष्ट हो गया है। ...कैसे पुरुष पुरुष-कर्म करके स्त्री को जान से मार देगा ?" उस समय सावत्थी में लोग भितुओं को देखकर ( उन्हें ) असभ्य और कड़े शब्दों से फटकारते थे, परिहास करते थे...। तब बहुत से भिक्षु श्रावस्ती से...पिंडपात करके ...भगवान के पास जाकर...बोले-"इस समय भगवान् ! श्रावस्ती में लोग भिक्षुओं को देखकर असभ्य और कड़े शब्दों से फटकारते हैं ...। यह शब्द भिक्षुओ ! चिरकाल तक नहीं रहेगा, एक सप्ताह में समाप्त हो लुप्त हो जायगा...: (और) वह, शब्द नहीं चिरकाल तक रहा. सप्ताह भर ही रहा... ।"
धम्मपद-अट्ठकथा में भी यह कथा आई है, जहाँ यह विशेषता है-...तब तीर्थकों ने कुछ दिनों के बाद गुंडों को कहापण देकर कहा--जाओ सुंदरी को मारकर श्रमण गौतम की गंधकुटी के पास मालों के कूड़े में डाल पाओ...।... राजा ने कहा- तो (मुर्दा लेकर) नगर में घूमी।...(फिर) राजा ने सुंदरी के शरीर को कच्चे श्मशान में मचान बाँधकर रखवा दिया।...गुंडों ने उस कहापण से शराब पीते ही झगड़ा किया ( और रहस्य खोल दिया )... । राजा ने फिर तैर्थिकों को कहा-जाओ, यह कहते हुए नगर में घूमो कि यह सुदरी हमने मरवाई...। ( फिर ) तीर्थकों ने भी मनुष्य-वध का दंड पाया। ___ उदान में कहा है-(१) तीर्थकों ने खुद मारा। (२) जेतवन की परिखा में कुआँ खोदकर सुंदरी के शरीर को दबा दिया। (३) सप्ताह बाद अपनी ही बदनामी रह गई। लेकिन धम्मपदअट्ठकथा में-(१) तीर्थकों ने गुंडों से मरवाया। (२) जेत
ध० ५०, २२.१, अ० क०, ५७१ ।
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