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जेतवन
२६१ "भितुओ, श्रद्धालु उपासक अच्छी प्रार्थना करते हुए यह प्रार्थना करे, वैसा होऊँ जैसा कि वित्त गहपति ।" (अं० नि० ३-२-२-५३)।
सुंदरी-जेतवन के संबंध में एक और प्रसिद्ध घटना (जो अट्ठकथा और चीनी परिव्राजको के विवरण में ही नहीं, वरन् उदान में भी, जो त्रिपिटक के मूल भाग में हैं) सुदरी परिवाजिका की है। उदान में इसका उल्लेख इस प्रकार है
__ "भगवान् जेतवन' में विहरते थे। उस समय भगवान् और भिक्षुसंघ सत्कृत पूजित, पिंडपात, शयनासन, ग्लानप्रत्य भैषज्यों के लाभी थे, लेकिन अन्य तीर्थिक परिव्राजक प्रसत्कृत...थे। तब वे तीर्थिक, भगवान् और भिक्षुसंघ के सत्कार को न सहते हुए, सुदरी परिवाजिका के पास जाकर बोले
भगिनी ! ज्ञाति की भलाई करने का उत्साह रखती हो ?मैं क्या करूं आर्यो ! मेरा किया क्या नहीं हो सकता ? जीवन भी मैंने ज्ञाति के लिये अर्पित कर दिया है । --तो भगिनी बार बार जेतवन जाया कर। बहुत अच्छा आर्यो ! यह कहकर..., सुदरो परिव्राजिका बराबर जेतवन जाने लगी। जब अन्य तीर्थिक परिव्राजकों ने जाना, कि बहुत लोगों ने सुंदरी...को बराबर जेतवन जाते देख लिया, तो उन्होंने उसे जान से मारकर वहीं जेतवन की खाई में कुआँ खोदकर डाल दिया और राजा प्रसेनजित् कोसल के पास जाकर कहा--महाराज ! जो वह सुंदरी परिव्राजिका थी, से नहीं दिखलाई पड़ती।--तुम्हें कहाँ संदेह है ?--जेतवन में महाराज ।--तो जाकर जेतवन को ढूँढ़ो। तब ( उन्होंने ) जेतवन में ढूँढ़कर अपने खादे हुए परिखा के कुएं से निकालकर खाट पर डाल श्रावस्ती में प्रवेश कर एक सड़क से दूसरी सड़क, एक चौराहे से दूसरे चौराहे पर जाकर आदमियों को शंकित कर दिया--"देखो मार्यो ! शाक्यपुत्रीय
(१) उदान, ४.८ ( मेघियवग्ग )।
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