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नागरीप्रचारिणी पत्रिका अन्यत्र धम्मपद (८:११ अ० क० ) में भी उपसंपदा-मालक नाम आता है।
यह संभवत: गंधकुटो के पास कहीं एक स्थान था, जहाँ प्रव्रज्या दी जाती थी। जेतवन में वैसे सभी जगह वृक्ष ही वृक्ष थे, अतः इसकी सीमा में वृक्ष का होना कोई विशेषता नहीं रखता।
आनंदबाधि-आखिरी चीज जो जेतवन के भीतर रह गई वह आनंदबोधि है। जावकटकथा में उसके लिये यह वाक्य है--
"आनंद स्थविर ने रोपा था, इसलिये आनंदबोधि नाम पड़ा। स्थविर द्वारा जेतवनद्वारकोष्ठक के पास बोधि (= पीपल ) का रोपा जाना सारे जंबूद्वीप में प्रसिद्ध हो गया था।"
भरहुट की जेतवन-पट्टिका में भी गंधकुटी के सामने, कोसंबकुटी से पूर्वोत्तर के कोण पर, वेष्टनी से वेष्टित एक वृक्ष दिखाया गया है, जो संभवतः प्रानंदबोधि ही है। यद्यपि उपर्युक्त उद्धरण से यह नहीं मालूम होता कि यह पीपल का वृक्ष द्वारकोष्ठक के बाहर था या भीतर; किंतु अधिकतर इसका भीतर ही होना मालूम पड़ता है, क्योंकि ऐसा पूजनीय वृक्ष जेतवन खास के भीतर ही होना चाहिए। पट्टिका में भी भीतर ही दिखलाया गया है, क्योंकि उसमें द्वारकोटक छोड़ दिया गया है।
वडढमान-जेतवन के भीतर यह एक और प्रसिद्ध वृक्ष था। धम्मपदट्ठकथा में-"प्रानंद, प्राज वर्द्धमान की छाया में...चित्त... मुझे वंदना करेगा।...वंदना के समय राज-मान से माठ करीस प्रमाण प्रदेश में...दिव्य पुष्पों की धन वर्षा होगी।" (ध० ५० ५: १४.प्र. क. २५०)। यह चित्त गृहपति तथागत के गृहस्थ सर्वश्रेष्ठ शिष्यों में था। तथागत ने इसके बारे में स्वयं कहा है
१. जातक, २६१ ।
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