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________________ नागरीप्रचारिणी पत्रिका परिखा - सुंदरी के इस वर्णन से यह भी पता लगता है कि -- इसलिये बाँस या जेतवन के चारों और परिखा खुदी हुई थी । काँटे की बाड़ नहीं रही होगी । इन इमारतों के अतिरिक्त जेतवन के अंदर पेशाबखाने, पाखाने, चंक्रमणशालाएँ भी थीं; किंतु इनका कोई विशेष उद्धरण नहीं मिलता । जेतवन बनने का समय - पृष्ठ २५८ में दिए विनय के प्रमाण से पता लगता है कि राजगृह में अनाथपिंडिक ने वर्षावास के लिये निमंत्रित किया था । फिर वर्षा भर रहने के लिये स्थान खोजते हुए उसे जेतवन दिखलाई पड़ा और फिर उसने बहुत धन लगाकर वहाँ अनेक सुंदर इमारते बनवाई । यद्यपि सूत्र और विनय में हमें बुद्ध के वर्षावासों की सूची नहीं मिलती तो भी अट्ठकथाएँ इसकी पूरी सूचना देती हैं । अंगुत्तरनिकाय - अट्ठकथा ( ८:४:५) में यह इस प्रकार है - वर्षा ० ई० पू० १ २ २६४ ४ ५ (५२७) (५२६) (५२५) (५२४) (५२३) (५२२) (५२१) (५२०) (५१-६) १० (५१८) ११ (५१७) १२ (५१६) १३ (५१५) Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat € ऋषिपतन ( सारनाथ ) राजगृह (वेलुवन ) "" "" "" "" वैसाली (महावन ) मंकुल पर्वत तावतिंसभवन भग्ग ( सुंसुमारगिरि = चुनार) htafat पारिलेय्यक वनसंड नाला वेरंजा चालिय पव्वत www.umaragyanbhandar.com
SR No.034974
Book TitleNagri Pracharini Patrika Part 15
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShyamsundardas
PublisherNagri Pracharini Sabha
Publication Year1935
Total Pages526
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size34 MB
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