SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 293
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २८८ नागरीप्रचारिणी पत्रिका इन उद्धरणों से मालूम होता है कि (१) जंताघर संघाराम के एक छोर पर होता था। (२) यह नहाने की जगह थो । (३) ईट, पत्थर या लकड़ो की चुनी हुई इमारत होती थी । (४) उसमें पानी गर्म करने के लिये आग जलाई जाती थी, इसी लिये उसे अग्निशाला भी कहते हैं। (५) उसमें केवाड़, वाला-चाभी भी रहती थी। (६) धूएँ की चिमनी भी होती थी। (७) बड़े जंताघरों में आग जलाने का स्थान बीच में, छोटों में एक किनारे पर। (5) जंताघर की भूमि ईट, पत्थर या लकड़ी से ढकी रहती थी। (६) उसमें पीढ़े पर बैठकर नहाते थे। (१०) वह ईट, पत्थर या लकड़ी की दीवार से घिरा रहता था। ___ महावग्ग में सामणेर का कर्त्तव्य वर्णन करते हुए जंताघर के संबंध में इस प्रकार कहा गया है___ "यदि उपाध्याय नहाना चाहते हो ।... यदि उपाध्याय जंताघर में जाना चाहते हो, तो चूर्ण ले जाना चाहिए, मिट्टी भिगोनी चाहिए । जंताघर के पीठ (=चौकी) को लेकर उपाध्याय के पीछे पोछे जाकर, जंताघर में पीठ देकर, चीवर लेकर एक तरफ रखना चाहिए ! चूर्ण देना चाहिए। मिट्टी देनी चाहिए।...जल में भी उपाध्याय का परिकर्म करना ( = मलना) चाहिए। नहाकर पहले ही निकलकर अपने गान को निर्जल कर वस्त्र पहनकर, उपाध्याय के गात्र से जल सम्मार्जित करना चाहिए। वन देना चाहिए, संघाटी देनी चाहिए। जंताघर के पीठ को लेकर पहले ही ( निवासस्थान पर ) आकर प्रासन ठीक करना चाहिए..." जंताघर के वर्णन में इस प्रकार है - अनुज्ञा देता हूँ ( जंताघर को) उप-वस्तुक करना...केवाड़... सूचिक, घटिक तालछिद्र...धूमनेत्र...,...छोटे जंताघर में एक तरफ (१) (महा. व., p. 43) (२) चु० व०, खुद्दकवत्थुक्खंधक, p. 213,21) . Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034974
Book TitleNagri Pracharini Patrika Part 15
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShyamsundardas
PublisherNagri Pracharini Sabha
Publication Year1935
Total Pages526
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size34 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy