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________________ जेतवन २८७ to be of a slightly Inter date than the building r...... The bricks are of the same size as those in the building k......sweet and clear water...... जंताघर (= अग्निशाला)-इसके बारे में धम्मपद अटुकथा के वाक्य ये हैं सड़े शरीरवाला तिष्य' स्थविर अपने शिष्य आदि द्वारा छोड़ दिया गया था। (भगवान् ने सोचा ) इस समय इसको मुझे छोड़ दूसरा कोई अवलंब नहीं; और गंधकुटो से निकल विहारचारिका करते हुए, अग्निशाला में जा जलपात्र को धो चूल्हे पर रख जल को गर्म हुआ जान, जाकर उस भिक्षु के लेटने की खाट का किनारा पकड़ा। तब भितु खाट को अग्निशाला में लाए। शास्ता ने इसके पास खड़े हो गर्म पानी से शरीर को भिगोकर मल मलकर नहलाया। फिर वह हल्के शरीर हो और एकाग्रचित्त हो खाट पर लेटा। शास्ता ने उसके सिरहाने खड़े हो यह गाथा कह उपदेश दिया___ "देर नहीं है कि तुच्छ, विज्ञान-रहित, निरर्थक काष्ठखंड सा यह शरीर पृथिवी पर लेटेगा। ...देशना के अंत में वह अर्हत्व को प्राप्त हो, परिनिवृत्त हुआ। शास्ता ने उसका शरीरकृत्य कराकर हड्डियां ले चैत्य बनवाया ।" जंताघर और अग्निशाला दोनों एक ही चीज हैं। चुल्लवग्ग में अग्निशाला के विधान में यह वाक्य है "अनुज्ञा देता हूँ, एक तरफ अग्निशाला...ऊँचो कुर्सी की..., ईट पत्थर या लकड़ी से चुनी...,सोपान...प्रालंबनबाहु-सहित...।" (१)(ध०प०४:८, अ. क. १५७ )। (१) "जंताघरं त्वग्गिसाला" (अभिधानप्पदीपिका २१४)। (३) अनुमानामि भिक्खवे एकमंतं अग्गिसालं कातु...उच्चवत्थुकं इटिकाचयं सिलाचयं दारुचयं...सोपाण...प्रालंबणवाई...।" (सेनासनक्खं धक, ६)। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034974
Book TitleNagri Pracharini Patrika Part 15
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShyamsundardas
PublisherNagri Pracharini Sabha
Publication Year1935
Total Pages526
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size34 MB
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