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नागरीप्रचारिणी पत्रिका गंधकुटी, मंडप और शाला के बीच में था', जिसमें 'गंधकुटी, मंडप' को 'गंधकुटी-मंडप' स्वीकार किया जा सकता है, किंतु आगे 'इसी लिये गंधकुटी भी...,मंडप भी और शाला भी...से मालूम होता है कि यहाँ करेरिकुटी, कररिमंडप, करेरिमंडलमाला ये तीन अलग चीजें हैं, और इन तीनों के बीच में कररि वृक्ष था। लेकिन दीघनिकायट्ठकथा का 'वह करेरिमंडप गंधकुटी और निसीदनशाला के बीच में था'-यह कहना फिर करेरिमंडप को संदेह में डाल देता है। इससे तो मालूम होता है 'करेरिवृक्ष' की जगह पर 'करेरिमंडप' भ्रम से लिखा गया जान पड़ता है। यद्यपि इस प्रकार करेरिमंडप का होना संदिग्ध हो जाता है; तो भी इसमें संदेह नहीं कि कररि वृक्ष करेरिकुटी के सामने था, जिसके आगे करेरिमंडलमाल । जेतवन में सभी प्रधान इमारते गंधकुटी की भाँति पूर्वमुंह ही थीं। करेरिकुटी के द्वार पर पूर्व तरफ एक करेरि का वृक्ष था, और उससे पूर्व तरफ (१) करेरिमंडलमाल था, जिसमें भोजनोपरांत भिक्षु प्रायः इकट्ठा होकर धर्म-चर्चा किया करते थे। (२) यह मंडलमाल प्रतिवर्ष फूस से छाया जाता था, इसलिये कोई स्थायी इमारत न थो।। ___यहाँ हमें यह कुछ भी नहीं पता लगता कि करेरिकुटी, कोसंबकुटो और गंधकुटी से किस ओर थी। यदि हम 'करेरिकुटी, कोसंबकुटी, गंधकुटी' इस क्रम को उनका क्रम मान लें, वो करेरिकुटो कोसंबकुटी से भी पश्चिम थी। यहाँ सललघर को इस क्रम से किंतु नहीं मानना होगा क्योंकि यह तैर्थिकों की जगह पर राजा प्रसेनजित् का बनवाया हुआ भाराम था। शायद यह जेतवन के वस्तुत: बाहर होने पर भी समीपता के कारण उसमें ले लिया गया था। ऐसा होने पर Mo. No. b. को हम करेरिकुटिका मान सकते हैं। करेरि का वृक्ष उसके द्वार पर पूर्वोत्तर के कोने में था, और
करेरिमंडल माल उससे पूर्वोत्तर में। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
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